नई पुस्तकें >> वक्त की गुलेल वक्त की गुलेलरमेश प्रजापति
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रमेश प्रजापति का पाँचवाँ कविता-संग्रह है। समय-समाज कैसा भी रहे-एक कवि की पकड़ हमेशा अपने समाज पर बनी रहती है। वह शोषण के विरुद्ध एवं समानता, न्याय और जन-संघर्ष के साथ खड़ा रहता है। रमेश जी की कविताएँ इसी प्रतिबद्धता को दर्ज करती हैं। स्त्री पर अत्याचार और हिंसा, मज़दूर वर्ग का शोषण, इस सब का प्रतिकार, मध्यम वर्ग की बेचैनी और छटपटाहट इनकी कविताओं के प्राण तत्त्व हैं । वैश्वीकरण के इस दौर में पूँजीवाद ने समाज को उपभोक्तावादी बनाकर उसकी संवेदनाओं का अपहरण कर लिया है और हमारे जल, जंगल, ज़मीन को बाज़ार का उत्पाद बनाकर पर्यावरण का संकट पैदा किया है। साम्प्रदायिकता का कोढ़ समाज को लगातार खोखला करता जा रहा है जिसके तहत एक समुदाय के ख़िलाफ़ नफ़रत पैदा की जा रही है। ये प्रश्न इस संग्रह में बार-बार उठाये गये हैं।
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