नई पुस्तकें >> जितनी हँसी तुम्हारे होंठों पर जितनी हँसी तुम्हारे होंठों परजितेन्द्र श्रीवास्तव
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मैं तुम्हें प्रेम करता हूँ
मैं तुम्हें प्रेम करता हूँ
इसलिए तुम्हारी देह को भी प्रेम करता हूँ
मैं आकर्षण से भरा हूँ तुम्हारी देह के लिए
इसलिए करता हूँ तुमको प्रेम
यह कहना असंगत होगा पूरी तरह
सखी ! ओ सखी !!
प्रेम में होती है देह
पर देह के बिना भी होता है प्रेम।
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