लोगों की राय

नई पुस्तकें >> जिनकी मुट्ठियों में सुराख था

जिनकी मुट्ठियों में सुराख था

नीलाक्षी सिंह

प्रकाशक : सेतु प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2022
पृष्ठ :230
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 16601
आईएसबीएन :9789393758088

Like this Hindi book 0

5 पाठक हैं

जिन्दगी को खोल दे तो वह कोरे कागज जैसी। वह मोड़कर उसका जहाज बना सकती थी और एक सुर में पानी का इन्तजार कर सकती थी, उसे तैराने के लिए। अगर कि पानी बाल्टी भरकर सामने आ जाता तो वह तुनक कर खयाल बदल लेती और जहाज को वापस खोलकर कागज और कागज को एक बार फिर वापस मोड़कर पंखा बना लेती और ताबड़तोड़ उसे झलने लगती पसीने के इन्तजार में। अगर पसीना बूँद भर उग भी जाता होंठों के ऊपर तो वह धिक्कार भाव से पंखे की लहरों को भहराकर मुड़ेतुड़े कागज का नमकदान बनाने लग जाती। जब नमकदान में भरे जाने के लिए बारीक नमक खुद हाजिर हो जाता तो वह झुँझलाकर कागज को तोड़-मरोड़कर कूड़ेदान तलाशने लगती। पर ऐन वक्‍त पर कूड़ेदान अपने को छिपाकर जिन्दगी को गर्क होने से साफ-साफ बचा लेता।

– इसी पुस्तक से

प्रथम पृष्ठ

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book