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आँख का पानी

दीपाञ्जलि दुबे दीप

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :112
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 16640
आईएसबीएन :978-1-61301-744-9

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दीप की ग़ज़लें

8. रास आया न हमें सब पे निछावर होना


रास आया न हमें सब पे निछावर होना
हमको मंजूर कहाँ था कभी चाकर होना

मैंने माँगा ही नहीं चाहते तो दबती रहीं
वो तो कर्मों से ही तय होता मुकर्रर होना

असलियत में जो मुहब्बत थी दिखाई उसने
दिल ने समझा है ये आँखों का समुन्दर होना

तेरी यादों का मकाँ हमने बनाया दिल में
आज भी बाकी है कोना कहीं खंडर होना

रोता इंसान नहीं दिखता ज़माने को कभी
आज हर शख़्स को मंजूर है पत्थर होना

आप इनको न दबाओ इन्हें तो बहने दो
अश्क को एक न इक दिन तो है बाहर होना

तीरगी दूर करे नूर दिखे जलने से
'दीप' किस्मत में लिखा बाती का रहबर होना


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