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आँख का पानी

दीपाञ्जलि दुबे दीप

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :112
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 16640
आईएसबीएन :978-1-61301-744-9

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दीप की ग़ज़लें

अपनी बात

प्रिय पाठक,
 नमस्कार!

मेरा जन्म दिनांक 1 जुलाई 1975 को ब्राह्मण परिवार में श्री शिवदत्त दीक्षित की पुत्री के रूप में लक्ष्मणपुर मिश्रान, कानपुर देहात में, मेरे नाना जी के घर में हुआ था। मेरी परवरिश कानपुर शहर में मेरे माता-पिता श्री शिवदत्त दीक्षित स्व. श्रीमती मुन्नी दीक्षित के साथ-साथ मेरी दादी स्व.सरस्वती देवी मिश्रा जी के द्वारा हुई और उन्हीं के आशीर्वाद से आज मैं यहाँ तक पहुँच पाई हूँ।

मैंने समाजशास्त्र से परास्नातक किया है। साथ में (आई जी टी बाम्बे आर्ट्स) और महाविद्यालय में एढाक पर कार्यरत हूँ। मेरी शादी 25 अप्रैल सन् 1998 में कानपुर शहर में ही एडवोकेट श्रीमान संदीप दुबे जी से हुई थी। मेरे परिवार में सास-ससुर, एक पुत्र व पुत्री जिनका का नाम आदित्य दुबे एवं दिव्यांशी दुबे है।

मैं बचपन से साहित्य प्रेमी रही हूँ तथा प्रतिष्ठित साहित्यकार निराला जी आ० सुभद्राकुमारी चौहान जी, आ० महादेवी वर्मा जी, आ० दिनकर जी, आ० रहीमदास जी, आ० कबीरदास जी, तुलसीदास जी के रामचरितमानस से प्रभावित थी। हालाँकि मैं आज भी साहित्य की बारीकियों को सीख ही रही हूँ, और आगे भी सीखने का प्रयास जारी रहेगा।

इससे पहले माँ शारदे की कृपा व बड़ों के आशीर्वाद से एक कृति ‘दीप काव्यांजलि’ और दुर्गा चालीसा के अलावा आठ साँझा संकलन प्रकाशित हो चुके हैं.! आज मैं आप सभी को अपने एकल ग़ज़ल संग्रह ‘आँख का पानी’ से परिचय करवाना चाहती हूँ।

मेरे आत्म क‌थ्य में ज्यादा कुछ नहीं है। एक दिन ऐसा लगा मानो साक्षात् माँ शारदे मुझे आशीर्वाद दे रहीं हों और उनकी कृपा से सर्वप्रथम समृद्ध मंच काव्य कोश से जुड़ गई। मुझे लगा मेरी लेखनी को एक रास्ता मिल गया है, वहीं से बहुत से लोग मेरे सम्पर्क में आए जिन्हें मैं अपने गुरु का दर्जा देती हूँ। उन्हीं से मुझे बहुत सी बातों का ज्ञान प्राप्त हुआ। उनके नाम मै अवश्य अपने संग्रह में लेना चाहूँगी। मैं आदरणीय कुमार सुरेंद्र शर्मा 'सागर' जी, आ० समर कबीर जी, आ० आदित्य सक्सेना जी व आ० प्रदीप अवस्थी 'सादिक' जी, आ० चन्द्र स्वरूप बिसारिया जी, आदरणीया मनजीत शर्मा जी, आ० ज्योति मिश्रा जी जो सब मेरे ग़ज़ल गुरू रहे हैं अगर वह नहीं मिले होते तो मैं एक भी ग़ज़ल नहीं लिख सकती थी। वैसे भी यह सत्य ही है कि गुरु बिन ज्ञान न होत गोसाईं, आ. विकास शुक्ल 'प्रचण्ड' जी से बहुत सीखने का अवसर प्राप्त हुआ ! जिन्हें अपने क्षेत्र में महारत प्राप्त है। मेरी लेखनी को धार देने का श्रेय मैं इन सभी को देना चाहूँगी।

पहले मैं सिर्फ छंद मुक्त ही लिखती थी या यूँ कहें कि अन्य विधा के लिए सोचती ही नहीं थी। मेरा यह भी मानना है कि कोई लिखता है तो वह माँ सरस्वती के आशीर्वाद के बिना नहीं लिख सकता वह हमारी वाणी पर, जिह्वा पर और क़लम पर विराजित होती हैं तभी हम छोटे से छोटा भी सृजन कर पाते हैं। ऐसा ही मेरे साथ हुआ कि मैं उनके वरद हस्त के कारण ही यह सारी ग़ज़लें लिख पाई हूँ। तब सोचा कि अब मुझे अपना एक ग़ज़ल संग्रह प्रकाशित करवाना चाहिए अत: यह संग्रह आपके समक्ष रखने का साहस कर रही हूँ ! आप सब संग्रह को पढ़ें और मेरी गल्तियाँ या प्रशंसा जो भी हो मुझे बताएँ।

आग्रहपूर्वक
दीपाञ्जली दुबे 'दीप'

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