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अम्माँ

साजिद हाशमी

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :112
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 16643
आईएसबीएन :978-1-61301-745-6

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माँ की शान में 101 शेर

 

शायरी में माँ की अहमियत
और
साजिद हाशमी

- हसन फ़तेहपुरी

जब कभी भी हम शायरी की बात करते हैं तो एक ख़याल ज़ेह्न में आता है कि हम अपनी बात को किसी से ख़ूबसूरत अंदाज़ में कहना चाहते हैं तो शायरी का सहारा लेते हैं। जब से शायरी का सिलसिला शुरू हुआ है तब से इस में हमेशा अलग अलग विषयों पर कुछ न कुछ लिखा जाता रहा है। विषय समय-समय पर बदलते रहे हैं। पहले महबूब से गुफ़्तगू को शायरी में विशेष स्थान प्राप्त था लेकिन धीरे धीरे अन्य विषयों को भी शामिल किया गया। जैसे सामाजिक विषय, समाज में आपसी रिश्तों की अहमियत, सियासत, अन्तर्राष्ट्रीय विषय, धार्मिक इत्यादि।

आज का यह मज़मून विशेष रूप से माँ की मोहब्बत और उसका समाज और अपने बच्चों के लिए किये गये बलिदान पर केन्द्रित है। जहाँ तक मैं समझता हूँ शायद ही कोई ऐसा रचनाकार हो जिसने कभी न कभी अपने रचना में माँ की महानता का वर्णन न किया हो। लेकिन इन्हीं में कुछ शायर ऐसे भी हैं जिन्होंने अपनी शायरी में माँ के बारे में बहुत कुछ लिखा है। ऎसे ही शायरों में एक नाम का ज़िक्र मैं ख़ास तौर पर करना चाहता हूँ। मेरी मुराद राजगढ़ (म.प्र.) के एक बेहतरीन और कोहनामश्क शायर जनाब साजिद हाशमी साहब का नाम है। जनाब साजिद हाशमी साहब ने अपनी शायरी में माँ की ममता उसकी महानता और औलाद के लिए उसके किए गए बलिदान को बहुत ख़ूबसूरत तरीके़ से तहरीर किया है। उनका यह अन्दाज़ ए बयान पढ़ने वालों के दिलों पर अपनी अमिट छाप छोड़ता है। साजिद हाशमी साहब का मुनफ़रिद लब ओ लहजा उनकी रचनाओं को सब से अलग करता है। साजिद साहब की आने वाली किताब में आपको यह तमाम खूबियाँ नज़र आयेंगी।

मेरी दुआ है कि जनाब साजिद हाशमी साहब की किताब लोगों तक पहुँच कर उनके दिलों में अपनी ख़ास जगह बनाए और सब के बीच मक़बूल हो। मुझे यक़ीन है कि जिस माँ के प्रेम और अकी़दत का इस किताब में दिल की गहराई में ज़िक्र किया गया है उसी माँ की दुआ और आशीर्वाद से यह किताब अपनी शोहरत, कामयाबी और बुलन्दी को छुएगी।

मैं अपनी बातों की सच्चाई को साबित करने के लिए साजिद हाशमी साहब की रचनाओं के कुछ शेर उदाहरण के तौर पर पेश कर रहा हूँ।

अम्बर है तो बहुत बड़ा पर,
छोटा है माँ के आँचल से।

लुत्फ़ इकराम से मिट्टी को सजाया होगा,
रब ने जिस वक्त वक्त मेरी माँ को बनाया होगा।

लरज़ती उंगलियाँ हैं मेरे सर पर,
मुझे सुल्ता बनाया जा रहा है।

माँ के रुख़ का तवाफ करती हैं
हैं इबादत गुज़ार आँखें भी।

- हसन फ़तेहपुरी
दिल्ली, भारत।


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