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स्त्री विमर्श का नया चेहरा

अल्पना मिश्र

प्रकाशक : वाणी प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :128
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 16652
आईएसबीएन :9789355188694

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बृहत्तर मानवीय संवेदनाओं, मानवीय मूल्यों की पक्षधरता, जन-जीवन के गहरे सरोकार, इतिहासबोध और बौद्धिकता के वैचारिक आयामों के जो पक्ष हैं, जो किसी भी लेखन को समझने की खिड़कियाँ बनाते हैं, वे भला स्त्री लेखन की बात आते ही इतने दूर कैसे कर दिये जाते हैं! उसकी समस्त रचनात्मकता को सभी प्रकार के तन्त्रों से काटकर इकहरा और निहायत घरेलू हदबन्दियों में कैद की श्रेणी में डाल देने का यह चलन हिन्दी साहित्य का नुकसान करता जा रहा है। यह षड्यन्त्र जैसा दिखता है, जो हिन्दी पाठक को नयी दृष्टि से जीवन के विस्तार और उसकी बहुआयामिता को समझने की तरफ जाने से रोकता है।

एक नये तरह का जो ‘स्त्री विमर्श’ हिन्दी में आया था, जिसे स्त्री विमर्श की सारी वैचारिकी के बीच से किसी एक तिनके को चुनने की तरह चुन लिया गया था. जो यौन स्वछन्दता के पाठ में सारी मानवता को ही भुला देता था और यौन हिंसा की बात तक नहीं करता था, जो सारे भारतीय स्त्री संघर्ष को और उसकी मेधा को भोथरा कर रहा था, उसका उद्देश्य सिर्फ यथास्थितिवाद को बनाये रखना था। मेरे सामने सवाल यह भी था कि अब नया क्या है, जो पिछले से अलग है? नया वह है, जो पिछली सारी गढ़ी गयी हदबन्दियों को तोड़ता, किसी भी तरह के फ्रेम में बाँधे जाने से इनकार करता, रचनाशीलता के बृहत्तर आयामों की तरफ जाता, अपना विस्तार करता है। सारी दुनिया को देखने का साहस और धैर्य लिए दिये, सारे आकाश को लिंगभेद के बँटवारे से मुक्त करता मानवीय दृष्टि के साथ रचनारत होता है।

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