नई पुस्तकें >> तुम्हारी खातिर तुम्हारी खातिरअभिषेक आनन्द
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ग़ज़ल, गीत, मुक्तक, शेर... जैसा कुछ
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एक बात
क्या आपने कभी तीन साल के किसी बच्चे की लिखावट देखी है?
नहीं देखी हो तो देखिएगा। बड़ी मुश्किल से उसकी लिखावट समझ में आती है, और अगर लिखावट समझ में आ भी जाए तो आपको उसमें व्याकरण की अनगिनत गलतियाँ मिल जायेंगी। मेरी ये किताब भी उस तीन साल के बच्चे के उस पेन की तरह है जिसमें शायद अनगिनत गलतियाँ निकलें।
इसका दोष मैंने कभी ख़ुद को दिया। मैंने लिखना चाहा और उससे भी पहले, कैसे लिखें - ये सीखना चाहा। पर, वो शायरी की भाषा में कहते हैं न कि, मुझे किसी ने अपना शागिर्द बनाया ही नहीं या शायद मुझे अब तक मेरा उस्ताद मिला ही नहीं !
पर करें क्या !! ज़िन्दगी इतनी छोटी है और मन में हज़ार कल्पनाएँ घूमती हैं। बस, एक उस्ताद के न होने की सज़ा इन कल्पनाओं को क्यों। इसलिए, अब मैं बिना संकोच के लिख़ता हूँ। अगर बुरा लिखा तो आलोचनाएँ सुन लेता हूँ ; अगर अच्छा लिखा तो तारीफ़ें भी बटोरता हूँ, पर लिखना कभी बन्द नहीं किया और न करूँगा।
खैर, सवाल ये है कि इस किताब में क्या है?
और जवाब ये है कि इस किताब में 6% मिलन और 94% विरह की रचनाएँ हैं।
मेरी इसी ज़िद का नतीजा है ये किताब। मैंने हमेशा चाहा कि लोग मुझे पाठक की तरह कम और आलोचक की तरह ज्यादा पढ़ें, क्या पता आप जैसे लोगों के बीच में ही मेरा कोई उस्ताद मेरे शे'रों का मीटर ठीक कर रहा हो !!
- अभिषेक
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