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भाषा एवं साहित्य >> राजस्थानी रनिवास

राजस्थानी रनिवास

राहुल सांकृत्यायन

प्रकाशक : किताब महल प्रकाशित वर्ष : 2019
पृष्ठ :365
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 16714
आईएसबीएन :9788122500592

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"असूर्यम्पश्याओं की गाथा : परदे के पीछे छिपी राजस्थान की अनकही दास्तान।"

प्राक्कथन

मेरी इस पुस्तक के बारे मे कहा जा सकता है, कि यह देर से लिखी गई, क्योंकि इसमे राजस्थान की सात पर्दे मे रहनेवाली जिन रानियो और ठाकुरानियो की बेबसी, दुःखगाथा और वहा के पुरुषों की स्वेच्छाचारिता का वर्णन किया गया है, वह अब अतीत की वस्तु होने लगी है, इसलिए इससे परतन्त्र असूर्यम्पश्याओ को अन्धकार मे सहायता नही मिल सकती। इसका उत्तर यह भी हो सकता है, कि इतिहास से विस्मृत हो जानेवाली इस जीवन का लिपिबद्ध होना जरूरी है, ताकि असूर्यम्पश्याओं की अगली सन्ताने तथा इतिहास के प्रेमी भी उनके बारे मे जान सके। साथ ही यह भी ध्यान मे रखने की बात है, कि यद्यपि राजस्थान के तहखाने टूट रहे है और उनके भीतर पीढियो से पले प्राणी बाहर निकलते आ रहे है, लेकिन तो भी तहखानो के बिलकुल साफ और खतम होने मे कुछ देर लगे बिना नही रहेगी, इसलिए हो सकता है, स्वेच्छा से मालिक के अस्तबल के किनारे फेरा लगानेवाली मुक्त-दासियों को इस पुस्तक से कुछ सहायता भी मिल जाये।

इस पुस्तक मे सभी स्थानों और व्यक्तियों के नामो को बदल दिया गया है, इसका कारण स्पष्ट है – लेखक व्यक्ति को थोडा और सामन्त-समाज को ज्यादा दोषी मानता है, इसलिए व्यक्ति का नाम देकर उसको मानसिक कष्ट पहुचाने से कोई फायदा नही। हो सकता है, घटनाओ और व्यक्तियो के समीप रहनेवाले पाठक उन्हे पहचान जाय, लेकिन उन्हे भी हर एक व्यक्ति के सभी पहलुओ को मिलाकर अपनी राय देनी चाहिए। इस पुस्तक मे स्थान-स्थान पर व्यक्तियों के गुणों का भी चित्रण हुआ है। हतभागिनी गौरी के दु:खो का कारण आप ठाकुर साहब को कह सकते है, लेकिन साथ ही जब यह भी देखते है, कि कितनी ही बार वह गढे से बाहर निकलने की कोशिश करते है, लेकिन सफल नही होते। सौत के ऊपर आप गुस्सा कर सकते है, लेकिन वह भी क्‍या करे ? उसे अपने को सुखी रखना है। दाव-पेच खेलती है, केवल इसीलिए कि कही उसके भाग्य का फैसला दूसरे के फेंके पासे द्वारा न हो जाय। साथ ही वह अपने वर्ग में इसी तरह का शिष्ट-आचार देखती है, इसलिए उसे उसका अनुसरण करना बुरा नहीं लगता। सबसे अधिक दोषी आप सेठ को ठहरा सकते हैं। उसके चरित्र मे सचमुच कहीं पर भी शुक्ल स्थान दिखलाई नहीं पडता, लेकिन वह भी सामन्ती समाज का विधाता नहीं। हाँ, वह उस वर्ग का प्रतिनिधि जरूर है, जो कि पेड़ पर से गिरे आम को बीच में ही से अपने हाथ मे आज किये हुए हैं। उसके चरित्र से यही मालूम होगा, कि सेठो का हृदय सामन्तो से भी निकृष्ट है।

यह कोई उपन्यास नहीं है, इसे कहना शायद अनावश्यक है। यहा आई हुई घटनाएँ १९१० ई० से १९५२ ई० तक की है। इस सीमा को एकाध ही जगह उल्लंघन किया गया है। सारी घटनाएं राजस्थान की हैं, एकाध जगह ही उन्होने बाहर पैर रक्खा है।

मसूरी, २-७-५२                                                                                                                   - राहुल साकृत्यायन

 

विषय सूची

  • शिशु आँखों से
  • परिवार
  • सासों का राजॉ
  • पुराने जगत्‌ की स्मृतियाँ
  • मासी-भांजी
  • भूतों का भय
  • व्रत-त्योहार
  • शिक्षा-दीक्षा
  • सगाई
  • ब्याह
  • मुकलावा (गौना)
  • ससुर की मृत्यु
  • परम स्वतन्त्र न सिर पर कोई
  • मौज और महफिलें
  • भक्ति का नशा
  • निर्बुद्धियों की पौध
  • सौत आई (१९४० ई०)
  • माँ की मौत
  • हृदय-हीनता
  • अन्नदाता-युगल
  • बाबोसा भी चले गये !
  • फिर ठाकुरसाहब
  • करमा ने कमाल किया

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