नई पुस्तकें >> बालरूप हनुमान बालरूप हनुमानसुनील गोम्बर
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आमुख
बंदऊ बालरूप हनुमंता, पाप हरण दारुण दुखहंता।।
लंक कलंक मिटावन हारे, कलियुग के एकमात्र सहारे।।
ईश्वरीय शक्ति का अवतरण बाल रूप में होता आया है यह मात्र महात्मय की ही पुष्टि रही हैं। श्री हनुमान जी अपने बालस्वरूप में ‘बाला जी’ नाम से विख्यात हैं, पूज्य है। हनुमत अवतरण, भक्ति, सेवा, संपूर्ण समर्पण के मूल भावार्थ की ही दिव्य अखण्ड ज्योति है जो युग युगान्तर से सदैव प्रकाशवान रहती आ रही हैं। ‘नाम महात्मय’ के ही संस्थापक आप का ‘नाम’ के प्रति स्नेह प्रेम समर्पण ऐसा अगाध है, ऐसी सर्वोच्च निष्ठा की पराकाष्ठा पर रहा है कि ‘नाम’ ही ‘शक्ति’ बन गया, शक्ति स्तोत्र बन चुका है। वही ‘रामकाज’ के लिये कल्याण संकट सहाय और अधर्म के नाश हेतु तो आपकी आतुरता जगविदित है। जन जन में उनके हृदय आंगन में विराजित हनुमत की मंगल मूरत सर्वदा ही रक्षक है यह विश्वास आज बढ़ता ही जाता दिखता है।
‘रामकाज’ तो आप को सर्वदा ही ध्येय है – उसके प्रति तो उनका समर्पण सदा ही तुलसी जी के शब्दों में ‘राम काज करिबे को आतुर’ रूप में ही रहा है। यह घोषणा सर्वदा ही हमारे सदग्रंथों और संतों की वाणी से ध्वनित ही रहती आ रही है।
‘राम’ के तो ऐसे सनेही है श्री हनुमान बाला जी कि यह पावन नाम और उनकी कथा का श्रवण सर्वदा ही प्राप्त होता रहे अतः प्रभु से मांगी भी तो अनपायनी निःश्वल भक्ति। अपने इस स्नेह मात्र से आप युगों युगों तक भक्तों के एकमात्र संरक्षक बन सशरीर इस धरा धाम पर सर्वत्र विराजमान हैं। ‘राम’ सर्वव्यापक “व्यापक परमानंद” ही है तो भला हनुमान जी इस परम आनंद को छोड़ना चाहते ही कहां हैं सो आप भक्ति को बना चुके हैं प्रीति-समर्पण की ही अलौकिक शक्ति।
बाल्यकाल में ही माता अञ्जना से “राम” से मिलने की इच्छा प्रदर्शित करने और प्रयुत्तर में ‘योग्यता’ का मापदण्ड भी प्राप्त करने के लिये – बाला जी महाराज – सूर्य देव से ही सर्वश्रेष्ठ विद्या विशारद – वेद-वेदांत -व्याकरण सूत्र – भाष्य सभी का ज्ञान प्राप्त कर बन गये। उन्ही सूर्य देव से जिन्हे फल समय ग्रसने को आप उन तक जा पहुंचे थे। अपनी उस बाल लीला से ही प्राप्त ‘हनुमान’ नाम और अनेकानेक दिव्य अमोघ वरों की प्राप्ति भी उन्हे “राम” से मिलने-“राम” का ही सान्निध्य प्राप्त करने की एकमात्र सेवा आकांक्षा से डिगा नहीं सकी। प्रभु भले ही ‘साकेत धाम’ गमन कर जायें बाल हनुमान तो उनके नाम और कथा का मधुर आनंद लेने और आराध्य स्वामी का ‘रामकाज’ करने को जन जन की पीड़ा हरने को सर्वदा ही हमारे सरक्षंक बन साथ-साथ हैं। तुलसी जी दिव्य स्तुति में – “चारों जुग परताप तुम्हारा” से हनुमान जी के इस दिव्य महात्मय-कृपा वरदान जो उनका अपने भक्तों के हेतु रहा है, की ही पुष्टि कर भी गये हैं।
प्रस्तुत पुस्तक में बाला जी हनुमान के बाल्यकाल की कीड़ाओं दिव्य लीलाओं और अपने ‘राम’ से मिलन और उनकी सेवा से जगकल्याण की ही आपकी दिव्य भूमिका के सुदंर चरित्र को ही हमने नमन किया है
नित्य सभी पर हनुमत कृपा वर्षा निरंतर बरसती रहे –
इस मंगल कामना के साथ
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