नई पुस्तकें >> जय हनुमान – कीर्ति ध्वज जय हनुमान – कीर्ति ध्वजसुनील गोम्बर
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बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवन-कुमार।
बल बुद्धि बिद्या देहु मोहिं, हरहु कलेस विकार।।
हनुमानजी शंकरजी के अंशावतार अर्थात रुद्रावतार हैं। बुद्धि-बल-विवेक तथा भक्ति में सबसे ऊँचे स्थान पर आसीन परमप्रिय रामभक्त हनुमान जी की उपासना और पूजा निश्चित ही फलदायी एवं कल्याणकारी है। युगों युगों से अपने संकटमोचक स्वरूप में हनुमानजी की पूजा देश-विदेश के सभी स्थानों पर होती आयी है। आप भक्तों के सबसे विश्वसनीय देवता एवं महाप्रभु हैं। मंगल मूर्ति हनुमानजी के हृदय में उनकृ आराध्य प्रभु श्रीराम सदैव हाथों में धनुष लिये मां जानकी के साथ विराजमान रहते हैं। हनुमानजी सदैव रामकथा का श्रवण, रामनाम जप एवं सुमिरन में प्रतिक्षण लीन एवं समर्पित रहते हैं।
जहां एक ओर दक्षिण भारत में आपका आञ्जनेय नाम प्रचलित है, वहीं महाराष्ट्र में मारुति, राजस्थान में बालाजी, तथा सम्पूर्ण उत्तर भारत में महावीर, पवनसुत, केसरीनंदन और बजरंग बली नामों की प्रधानता है।
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