नई पुस्तकें >> सुबोध सुकृति - गीत सुबोध सुकृति - गीतडॉ. सुबोध कुमार तिवारीडॉ. पूर्णिमाश्री तिवारी
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डा. सुबोध कुमार तिवारी का काव्य-संसार - गीत
मंगलाशा
मैंने स्व. डा. एस. के. तिवारी द्वारा विरचित 'सुबोध सुकृति' नामक काव्य कृति का अंशत: अवलोकन किया। डा. तिवारी चालीस वर्षों तक सरकारी सेवा में रहे। अपनी अति व्यस्तता के बावजूद उनका कवि-हृदय जब सहज संवेदनाओं से भावाकुल हो उठता, वे सहजतः काव्य रचना करने लगते थे और फिर परम विश्रांति का अनुभव करते थे। उनकी इन कविताओं को श्रीमती डॉ. पूर्णिमा तिवारी ने किसी तरह खोज-बीन कर स्मृति संरक्षण के ध्येय से पुस्तकाकार प्रकाशित करने का जो अनुष्ठान किया है, वह निश्चय ही सराहनीय है। इस संकलन में विभिन्न भावों से जुड़ी कवितायें हैं। इनमें कुछ पुराख्यानों से सम्बद्ध भक्ति और संस्कृतिसे संयुक्त कवितायें हैं, जैसे एक कविता है- 'राम ही संस्कृति' इसमें राम प्रतीक हैं, आस्था, विनय, शील और पौरुष के। रावण उनका विलोम है। उसका शमन कर रामराज्य की सुव्यवस्था का कवि ने आह्वान किया है। कुछ कविताओं में विश्व शान्ति और राष्ट्रत्व का प्रबोध दिया गया है। कवि ने नारा दिया है 'संग संग चलें हम'।
तिवारी जी भारतीय संविधान, राष्ट्र ध्वज और सही मतदान के आकांक्षी रहे हैं। उन्होंने 'अटल मिक्स' कविता में होली के बहाने तेरह की गणना के चमत्कार दिखाते हुए माननीय अटल जी के प्रति अपनी आस्था व्यक्त की है। अंतरर्राष्ट्रीय महिला दिवस के उपलक्ष्य में कवि ने नारी के प्रति निष्ठा प्रकट की है। कहीं बिन्दु का गणित समझाया है और कहीं सात स्वरों का सरगम। कवि ने जगह-जगह कई विचारोत्तेजक आत्म-कथ्य रखे हैं जैसे, 'मैंने गीत विधा में दीक्षा ली है' अथवा 'जीवन भर आलोचना, मरने पर श्रद्धाञ्जली' आदि।
इस संकलन में कुछ अवधी की कविताएँ भी बीच-बीच में रखी गयी हैं। इनमें कहीं-कहीं हास्य व्यंग्य है और कहीं-कहीं लोक संवेदना। अवध की प्रकृति से जुड़ा एक अच्छा ऋतु गीत है- 'बरखा काहे बरसत नाहीं।' जनजीवन से जुड़ा गीत है- 'मैहर ते प्रेम छ्वाड़ के हम' आदि। ये कविताएँ इस बात की साक्षी हैं कि अवधांचल के प्रति डा. तिवारी का घनिष्ठ रागात्मक लगाव था।
अस्तु, इस कृति के प्रकाशन के लिए मैं डा. पूर्णिमा जी को बधाई देता हूँ। दिवंगत कवि डा. तिवारी ने वाणी वंदना करते हुए भगवती सरस्वती को 'माँ चिकितुषी' नाम दिया है, शायद शब्द चिकित्सा के उद्देश्य से। विश्वास है कि इन कविताओं को पढ़कर मनः विश्रांति का अनुभव होगा।
साभिवादन
प्रो. सूर्यप्रसाद दीक्षित
'साहित्यिकी'
डी. 54, निराला नगर
लखनऊ - 20
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