भाषा एवं साहित्य >> आचार्य द्विवेदी की स्मृति में आचार्य द्विवेदी की स्मृति मेंमैनेजर पाण्डेय
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"आलोचना के प्रथम पुरोधा : परंपरा और आधुनिकता के संगम के प्रतीक"
आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी हिन्दी के पहले ऐसे लेखक थे, जिन्होंने अपनी जातीय परंपरा का केवल गहन अध्ययन ही नहीं किया था, बल्कि उसे आलोचकीय दृष्टि से भी देखा था। उन्होंने वेदों से लेकर पंडितराज जगन्नाथ तक के संस्कृत-साहित्य की निरंतर प्रवाहमान धारा का अवगाहन किया था एवं उपयोगिता तथा कलात्मक योगदान के प्रति एक वैज्ञानिक नजरिया अपनाया था। उन्होंने श्रीहर्ष के संस्कत महाकाव्य नैधीय चरितम् पर पहली आलोचना पुस्तक नैषधचरित चर्चा नाम से लिखी (1899), जो संस्कृत-साहित्य पर हिन्दी में पहली आलोचना-पुस्तक भी है। फिर उन्होंने लगातार संस्कृत-साहित्य को अन्वेषण, विवेचन और मूल्यांकन किया। उन्होंने संस्कृत के कुछ महाकाव्यों के हिन्दी में औपन्यासिक रूपांतर भी किये, जिनमे कालिदास कृत रघुवंश, कुमार संभव, मेघदूत, किरातार्जुनीय प्रमुख हैं।
सन् 1933 ईस्वी में आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी के सम्मान में काशी नागरी प्रचारिणी सभा ने यह अभिनंदन ग्रंथ प्रकाशित किया था। इस ग्रंथ का केवल ऐतिहासिक महत्व नहीं है, यह उस काल की विभिन्न भाषाओं, समाजों, साहित्यों, परंपराओं का समागम है। इसके लिए उस दौर के लगभग सभी चर्चित लेखकों, विचारकों, समाज सुधारकों ने लिखा, जिनमें कई यूरोप के भी हैं। विभिन्न भाषाओं, समाजों, साहित्यों, परंपराओं के बारे में महावीर प्रसाद द्विवेदी के दृष्टिकोण में जिस तरह का व्यापकता और उदारता थी, वैसी ही समग्रता इस ग्रंथ के निबंधों में भी है। इसमें मैथिलीशरण गुप्त, सियाराम शरण गुप्त, सुभद्राकुमारी चौहान, वासुदेव शरण अग्रवाल, मौलान सैयद हुतैन शिबली, संत निहाल सिंह, पदुमलाल पन्नालाल बख्शी, जार्ज ग्रियर्सन, मुंशी प्रेमचंद, महादेवी वर्मा, अजमेरी जी, भाई परमानंद और महात्मा गांधी सहित देश विदेश की सभी नवजागरण हस्तियों ने लिखा था। उस युग के अधिकांश कवियों की कविताएँ इसमें हैं तो कई चित्र भी हैं।
इस दुर्लभ ग्रंथ की प्रति आचार्य द्विवेदी के जन्म स्थल दौलतपुर (रायबरेली) में सक्रिय संस्था "आचार्य महावीर प्रसाद दिवेदी राष्ट्रीय स्मारक समिति” के सौजन्य से प्राप्त हुई। इस पुस्तक में हमने उस पुराने ग्रंथ को यथावत् प्रस्तुत किया है, केवल चित्रों को नए तरीके से सजाया गया है। इसका परिचय प्राख्यात आलोचक प्रो. मैनेजर पाण्डेय ने लिखा है।
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