कहानी संग्रह >> बीतते हुए बीतते हुएमधु कांकरिया
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हमारे समाज में प्रचलित रूढ़ मान्यताओं के बरक्स मानवीय स्वतन्त्रता का सवाल सदा ही अनदेखा किया जाता रहा हैं लेकिन मधु कांकरिया की कहानियाँ सिर्फ परम्परागत मान्यताओं की ही नहीं, अधुनिकता के आवरण में लिपटे जीवन-मूल्यों का भी पड़ताल करती हैं और हमारे सामने कई सुलगत हुए सवाल खड़ी कर सोचे को रचनात्मक आयाम प्रदान करती हैं। चाहे नक्सलवादी आन्दोलन पर आधारित लेकिन कामरेड हो, दाम्पतय जीवन में परस्पर विश्वास को रेखांकित करती चूहे को चूहा ही रहने दो हो या बच्चे के स्कूल में दाखिले के लिए एक स्त्री की व्यथा-कथा हो मधु कांकरिया कहीं भी विचार और संवेदना के स्तर पर पाठकों को निराश नहीं करती, बल्कि कथारस के प्रवाह में बहाए चलती हैं।
औपन्यासिक विस्तार की संभावना से युक्त ये कहानियाँ भाषा, शिल्प एवं विचार तत्व के अनूठेपन और भाव एवं विचार के अद्भुत सन्तुलन के कारण निश्चय ही पढ़ी जाएँगी, ऐसा हमारा विश्वास है।
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