विविध >> चमत्कारी प्रकृति संकेत चमत्कारी प्रकृति संकेतउमेश पाण्डे
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यह सत्य है कि प्रकृति हमें अक्सर भविष्य में होने वाली अनेक बातों की जानकारी विभिन्न संकेतों के माध्यम से देती है...
Chamatkarik Prakriti Sanket-A Hindi Book by Umesh Pande
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
यह एक निर्विवाद सत्य है कि प्रकृति समय-समय पर हमें भविष्य में घटित होने वाली अनेक बातों की जानकारी विभिन्न संकेतों के माध्यम से देती है। इस पुस्तक में ऐसे अनेक विचित्र प्रकृति-संकेतों का वर्णन किया गया है।
मसलन-
1. यदि कौआ आपके दरवाजे पर आता जाता हो तो निश्चय ही ये जानें कि कोई मेहमान आनेवाला है।
2. जिस घर के बैल यदि रात्रि में गर्जना करें तो स्वामी का कल्याण होता है।
3. आपके सिर पर छिपकली के गिरने से आगामी समय में शुभत्व की सूचना मिलती है।
4. घर में कैक्टस जाति के पौधों से उस घर में तनाव वृद्धि होती हैं।
5. जिस व्यक्ति को रात्रि में जल में डूबने का स्वप्न आये उसे निकट भविष्य में मूत्र संस्थान में विकार होगा।
6. जहाँ प्राय: कोयल आती जाती हो वहाँ जमीन के नीचे धन होता है।
7. भूसे के समान नख वाले पुरुषार्थहीन होते हैं।
8. जहाँ सर्प को छोड़कर अन्य कोई भी प्राणी अपना बच्चों का भक्षण करे वहाँ अकाल पड़ता है।
9. जिस व्यक्ति की कमर फड़कती है उसके आमोद-प्रमोद में वृद्धि होती है तथा ऐसी अनेकों बातों का समावेश इस पुस्तक में है।
साथी ही किसी भी प्रकार के अनिष्ट संकेत से बचने के उपाय भी।
मसलन-
1. यदि कौआ आपके दरवाजे पर आता जाता हो तो निश्चय ही ये जानें कि कोई मेहमान आनेवाला है।
2. जिस घर के बैल यदि रात्रि में गर्जना करें तो स्वामी का कल्याण होता है।
3. आपके सिर पर छिपकली के गिरने से आगामी समय में शुभत्व की सूचना मिलती है।
4. घर में कैक्टस जाति के पौधों से उस घर में तनाव वृद्धि होती हैं।
5. जिस व्यक्ति को रात्रि में जल में डूबने का स्वप्न आये उसे निकट भविष्य में मूत्र संस्थान में विकार होगा।
6. जहाँ प्राय: कोयल आती जाती हो वहाँ जमीन के नीचे धन होता है।
7. भूसे के समान नख वाले पुरुषार्थहीन होते हैं।
8. जहाँ सर्प को छोड़कर अन्य कोई भी प्राणी अपना बच्चों का भक्षण करे वहाँ अकाल पड़ता है।
9. जिस व्यक्ति की कमर फड़कती है उसके आमोद-प्रमोद में वृद्धि होती है तथा ऐसी अनेकों बातों का समावेश इस पुस्तक में है।
साथी ही किसी भी प्रकार के अनिष्ट संकेत से बचने के उपाय भी।
आद्यकथन
प्राय: ऐसा देखने में आता है कि जो लोग प्राचीन बातों पर विश्वास करते हैं, प्राचीन मान्यताओं को मानते हैं, उनके साथ घटित होने वाली किसी भी ऋणात्मक (अप्रिय) घटना के प्रति आशंकित हो उठते हैं अथवा इस घटना का दुष्परिणाम उन्हें भोगना न पड़े इसके लिए नाना प्रकार के उपाय आदि का सहारा लेते हैं। ऐसे में किसी पाखण्डी के चक्कर में पड़कर वे अपने श्रम, समय व धन की हानि भी उठाते हैं। ऐसे ही लोगों की समस्याओं का निवारण करने के लिये मैंने यह प्रयास किया है।
इस पुस्तक में मैंने यात्रा अंगुस्फुरण, पल्लीपतन, पूजन, छींक, केश, स्वप्न, खुजली, विवाह मैथुन तिल, प्राकृतिक उत्पाद आदि अनेक प्रकृति संकेतों एवं निमित्तों का वर्णन किया है। इन संकेतों एवं निमित्तों से जुड़े विभिन्न प्राचीन तथ्यों के साथ-साथ ऋणात्मकताओं के निवारणार्थ सरल उपायों का भी स्थान-स्थान पर मैंने वर्णन किया है ताकि किसी भी निमित्तजन्य ऋणात्मक अथवा अप्रिय घटना से बचा जा सके। यही नहीं इन्हीं निमित्तो के साथ-साथ मैंने अन्य कई प्राचीन जानकारियों को भी जो कि प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप में निमित्तों से जुड़ी हैं, पाठकों को लाभार्थ शामिल किया है। मेरा यह प्रयास कहाँ तक सफल है ? इसका निर्णय आपको करना है।
इस बात की संभावना बहुत अधिक है कि यह कृति अन्धविश्वास को बढ़ावा देने वाली घोषित कर दी जावे। किन्तु आज भी लोक अंचल अर्थात् समाज का एक काफी बड़ा तबका, एक बड़ा प्रतिशत इन प्राचीन निमित्त अथवा मान्यताओं को परोक्ष-अपरोक्ष रूप से मानता है और उन पर अपने अनुभवों के आधार पर विश्वास भी करते हैं वे इन तथ्यों को अपने-अपने अनुभव में ला सकते ही हैं। एक बात और कि इन तथ्यों के पीछे वैज्ञानिक कारण ढूँढ़ पाना काफी कठिन है। केवल स्वानुभाव ही इनका प्रमाण है। हाँ, इतना अवश्य कहा जा सकता है कि भौतिक जगत् से ऊपर एक सत्ता का संचालक को ही ऐसी विभिन्न बातों का आधारभूत कहा जा सकता है।
पुस्तक के संबंध में आपके विचारों, सुझावों अथवा आलोचनाओं की मुझे प्रतीक्षा रहेगी। सही अर्थ में वे मेरे लिये मार्गदर्शक सिद्ध होंगे। इसी प्रकार इस पुस्तक में किसी भी प्रकार की त्रुटि के लिये मैं क्षमाप्रार्थी हूँ।
अंत में, मैं भगवती पॉकेट बुक्स के श्री राजीव अग्रवाल का विशेष आभारी हूँ जिनकी प्रेरणा ने इस कृति को मूर्त्तरूप दिया। साथ ही मैं डॉ. बसंत कुमार जोशी जी, डॉ. हौसिला प्रसाद पाण्डे (कुण्डा, उ.प्र.), श्री रवि गंगवाल, श्री शरद दादा, श्री जी.पी. तिवारी, आई.ए.एस., स्व. भालचन्द्रजी उपाध्याय, श्री एस.के. चौधरी तथा नागेश्वर बाबा (धरगाँव) का भी हृदय से आभारी हूँ क्योंकि इस पुस्तक के संबंध में इन्हीं महानुभावों ने समय-समय पर मेरा मार्गदर्शन किया है।
धन्यवाद
इस पुस्तक में मैंने यात्रा अंगुस्फुरण, पल्लीपतन, पूजन, छींक, केश, स्वप्न, खुजली, विवाह मैथुन तिल, प्राकृतिक उत्पाद आदि अनेक प्रकृति संकेतों एवं निमित्तों का वर्णन किया है। इन संकेतों एवं निमित्तों से जुड़े विभिन्न प्राचीन तथ्यों के साथ-साथ ऋणात्मकताओं के निवारणार्थ सरल उपायों का भी स्थान-स्थान पर मैंने वर्णन किया है ताकि किसी भी निमित्तजन्य ऋणात्मक अथवा अप्रिय घटना से बचा जा सके। यही नहीं इन्हीं निमित्तो के साथ-साथ मैंने अन्य कई प्राचीन जानकारियों को भी जो कि प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप में निमित्तों से जुड़ी हैं, पाठकों को लाभार्थ शामिल किया है। मेरा यह प्रयास कहाँ तक सफल है ? इसका निर्णय आपको करना है।
इस बात की संभावना बहुत अधिक है कि यह कृति अन्धविश्वास को बढ़ावा देने वाली घोषित कर दी जावे। किन्तु आज भी लोक अंचल अर्थात् समाज का एक काफी बड़ा तबका, एक बड़ा प्रतिशत इन प्राचीन निमित्त अथवा मान्यताओं को परोक्ष-अपरोक्ष रूप से मानता है और उन पर अपने अनुभवों के आधार पर विश्वास भी करते हैं वे इन तथ्यों को अपने-अपने अनुभव में ला सकते ही हैं। एक बात और कि इन तथ्यों के पीछे वैज्ञानिक कारण ढूँढ़ पाना काफी कठिन है। केवल स्वानुभाव ही इनका प्रमाण है। हाँ, इतना अवश्य कहा जा सकता है कि भौतिक जगत् से ऊपर एक सत्ता का संचालक को ही ऐसी विभिन्न बातों का आधारभूत कहा जा सकता है।
पुस्तक के संबंध में आपके विचारों, सुझावों अथवा आलोचनाओं की मुझे प्रतीक्षा रहेगी। सही अर्थ में वे मेरे लिये मार्गदर्शक सिद्ध होंगे। इसी प्रकार इस पुस्तक में किसी भी प्रकार की त्रुटि के लिये मैं क्षमाप्रार्थी हूँ।
अंत में, मैं भगवती पॉकेट बुक्स के श्री राजीव अग्रवाल का विशेष आभारी हूँ जिनकी प्रेरणा ने इस कृति को मूर्त्तरूप दिया। साथ ही मैं डॉ. बसंत कुमार जोशी जी, डॉ. हौसिला प्रसाद पाण्डे (कुण्डा, उ.प्र.), श्री रवि गंगवाल, श्री शरद दादा, श्री जी.पी. तिवारी, आई.ए.एस., स्व. भालचन्द्रजी उपाध्याय, श्री एस.के. चौधरी तथा नागेश्वर बाबा (धरगाँव) का भी हृदय से आभारी हूँ क्योंकि इस पुस्तक के संबंध में इन्हीं महानुभावों ने समय-समय पर मेरा मार्गदर्शन किया है।
धन्यवाद
उमेश पाण्डे
1
मुहूर्त ज्ञान
भारतवर्ष में समस्त कार्य अधिकांशत: मुहूर्त देखकर किये जाते हैं। इसी परिप्रेक्ष्य में विभिन्न कार्यों को सम्पन्न करने हेतु कौन-कौन से मुहूर्त विशेष शुभ अथवा अशुभ होते हैं। इन्हें नीचे लिखा जा रहा है-
1. कुँआ, तालाब और बावली खुदवाने का मुहूर्त- अनु. हस्त, तीनों उत्तरा, रोहिणी, धनिष्ठा, शतभिषा, भरणी, पू.षा., रेवती, पुष्य, मृगशिरा, नक्षत्रों में। सोम, बुध दिनों में रिक्ता एवं भद्रादि दोषयुक्त तिथियों को छोड़कर। जलचर लग्न व चन्द्रयुक्त जलचर राशि में जलाशय खोदना शुभ होता है। घर के उत्तर, पूर्व, पश्चिम तथा ईशान में कुआँ खुदवाना शुभ होता है। घर के मध्य, आग्नेय दक्षिण, नैऋत्य, वायव्य में कुँआ खुदवाना अशुभ होता है।
2. भूमि क्रय-विक्रय मुहूर्त- तिथियों में दोनों पक्षों की 5,6,10,11। कृष्ण पक्ष को एकम तथा शुक्ल पक्ष की 15 नक्षत्र मृग, पुन, मघा, विशा, अनु, तीनों पूर्वा, मूल एवं रेवती। दिवस गुरु तथा शुक्र। लग्न- वृष, सिंह, वृश्चिक।
3. नये कारोबार के लिए- मंगल, नवमी, चतुर्थी, चौदस तथा कुम्भ लग्न छोड़कर शेष दिन लग्न में। मृग, रेवती, चित्रा, अनुराधा, तीनों उत्तरा, रोहिणी, हस्त, पुनर्वसु एवं पुष्य नक्षत्र में शुभ होता है।
4. समस्त धार्मिक कृत्य मुहूर्त- तिथियों में 2,3,5,6,11,12,13 कृष्ण पक्ष की एकम तथा शुक्ल पक्ष की 15। नक्षत्रों में अश्विनी, रोहिणी, मृग, आर्द्रा, पुन., पुष्य तीनों उत्तरा, हस्त, चित्रा, अनुराधा, अभिजित, धनिष्ठा तथा रेवती। दिनों में रवि, सोम, बुध, गुरु तथा शुक्र। लग्न- धनु, मकर, कुम्भ व मीन।
5. बहीखाता पूजन का मुहूर्त- 4,9 तथा 14 को छोड़कर शनि मंगल को छोड़कर अन्य वार में। मृग, पुन., तीनों उत्तरा, मृग, हस्त्र, चित्रा, अनुराधा श्रवण, रेवती तथा चर, द्विस्वभात लग्न में बहीखाता पूजन श्रेष्ठ होता है।
6. देवादि प्रतिष्ठा, व्रतोद्यापन- शुक्ल पक्ष में, सौमयान में (रिक्त तिथि तथा मंगलवार छोड़कर) स्थिर लगन में देवप्रतिष्ठा, जलाशय प्रतिष्ठा तथा व्रतों का उद्यापन करना चाहिये। जिस देवी देवता की जो तिथि निहित है उस तिथि में प्रतिष्ठा करें।
7. चौल मुण्डल मुहूर्त- चैत्र मास से आषाढ़ तक विषम वर्ष में शुभ दिन सोम, बुध, गुरु और शुक्र। तिथि 2,3,5,7,10,11,13। ज्येष्ठ संतान का ज्येष्ठ मास में मुण्डन वर्जित है।
8. गोद अथवा ओली भरने का मुहूर्त- उ.षा. स्वाति, श्रवण तीनों पूर्वा. अनु., धनि, कृति और विवाह विहित नक्षत्रों में, शुभ दिन व शुभ तिथि में।
9. शुभ नक्षत्र- अश्व, मृग, पुन., स्वाति, ज्ये., अभिजित, श्रवण, धनिष्ठा, शतभिषा, रेवती, हस्त्र, चित्रा। शुभ लग्न-वृष, मिथुन, कर्क, कन्या, तुला, धनु एवं मीन। भद्रा आदि दोष न हो।
10. सूतिका गृह प्रवेश मुहूर्त- रोहिणी, मृगशिरा, पुष्प, स्वाति, शतभिषा, पुनर्वसु, हस्त, धनिष्ठा, अनुराधा, चित्रा, अश्विनी, रेवती तीनों उत्तरा तथा श्रवण नक्षत्र शुभ हैं।
11. स्तनपान मुहूर्त- तीनों उत्तरा, रोहिणी, अश्विनी, पुनर्वसु, रेवती, पुष्य, अनुराधा, श्रवण, मृगशिरा, हस्त्र, चित्रा, स्वाति, धनिष्ठा, शतभिषा व अभिजीत नक्षत्र शुभ हैं।
12. सूतिका स्नान मुहूर्त- रेवती, तीनों उत्तरा, रोहिणी, मृगशिरा, हस्त्र, स्वाति, अश्विनी तथा अनुराधा ये नक्षत्र श्रेष्ठ हैं।
13. नामकरण मुहूर्त- रेवती, पुष्य, चित्रा, अनुराधा, तीनों उत्तरा, रोहिणी, हस्त्र, अश्विनी, तीनों उत्तरा, रोहिणी, अश्विनी, मृगशिरा, पुनर्वसु, स्वाति, श्रवण, धनिष्ठा एवं शतभिषा से नक्षत्र शुभ है।
14. कर्ण वेध मुहूर्त- जन्म से 6ठे, 7वें, 8वें मैस में विषम वर्ष में शुभ दिन एवं दिन एवं शुभ चौघड़िये में कर्ण वेध करना चाहिये। पुरुष का पहले दाहिना तथा लड़की का पहले बायाँ कर्ण छेदें। कर्ण छेदन चैत्र तथा पौष में कदापि न करें।
15. वधू प्रवेश मुहूर्त- रोहिणी, अनुराधा, पुष्य, हस्त्र, चित्रा, स्वाति, मूल श्रवण, धनिष्ठा, शतभिषा, मघा तीनों उत्तरा रेवती, अश्विनी तथा मृगशिरा शुभ नक्षत्र हैं।
16. नवीन गृह-प्रवेश मुहूर्त- तीनों उत्तरा रोहिणी, अनुराधा, मृगशिरा, चित्रा तथा रेवती इन नक्षत्रों में करें। साथ ही इसमें वाम सूर्य का विचार करना चाहिये। गृह प्रवेश हेतु माद्य, फाल्गुन, वैशाख तथा ज्येष्ठ के महीने विशेष शुभ माने गये हैं।
17. नवीन खाट अथवा पलंग पर प्रथम बार शयन करने का मुहूर्त-मूल, रेवती, चित्रा, अनुराधा, तीनों उत्तरा रोहिणी, हस्त, अश्विनी, अभिजीत इन नक्षत्रों को शुभ माना गया है।
18. विवाह मुहूर्त- अनुराधा, मूल, मघा, उत्तराषाढ़ा, रोहिणा, मृगशिरा, उत्तराफाल्गुनी, उत्तराभद्र, हस्त तथा रेवती।
उक्त सभी मुहूर्तों में भद्रा काल योग आदि का भी विचार अवश्य करना चाहिए।
किसी भी शुभ कार्य प्रारम्भ करने से पहले ‘‘श्रीगणेशाय नम:’’ का स्मरण अवश्य कर लें।
1. कुँआ, तालाब और बावली खुदवाने का मुहूर्त- अनु. हस्त, तीनों उत्तरा, रोहिणी, धनिष्ठा, शतभिषा, भरणी, पू.षा., रेवती, पुष्य, मृगशिरा, नक्षत्रों में। सोम, बुध दिनों में रिक्ता एवं भद्रादि दोषयुक्त तिथियों को छोड़कर। जलचर लग्न व चन्द्रयुक्त जलचर राशि में जलाशय खोदना शुभ होता है। घर के उत्तर, पूर्व, पश्चिम तथा ईशान में कुआँ खुदवाना शुभ होता है। घर के मध्य, आग्नेय दक्षिण, नैऋत्य, वायव्य में कुँआ खुदवाना अशुभ होता है।
2. भूमि क्रय-विक्रय मुहूर्त- तिथियों में दोनों पक्षों की 5,6,10,11। कृष्ण पक्ष को एकम तथा शुक्ल पक्ष की 15 नक्षत्र मृग, पुन, मघा, विशा, अनु, तीनों पूर्वा, मूल एवं रेवती। दिवस गुरु तथा शुक्र। लग्न- वृष, सिंह, वृश्चिक।
3. नये कारोबार के लिए- मंगल, नवमी, चतुर्थी, चौदस तथा कुम्भ लग्न छोड़कर शेष दिन लग्न में। मृग, रेवती, चित्रा, अनुराधा, तीनों उत्तरा, रोहिणी, हस्त, पुनर्वसु एवं पुष्य नक्षत्र में शुभ होता है।
4. समस्त धार्मिक कृत्य मुहूर्त- तिथियों में 2,3,5,6,11,12,13 कृष्ण पक्ष की एकम तथा शुक्ल पक्ष की 15। नक्षत्रों में अश्विनी, रोहिणी, मृग, आर्द्रा, पुन., पुष्य तीनों उत्तरा, हस्त, चित्रा, अनुराधा, अभिजित, धनिष्ठा तथा रेवती। दिनों में रवि, सोम, बुध, गुरु तथा शुक्र। लग्न- धनु, मकर, कुम्भ व मीन।
5. बहीखाता पूजन का मुहूर्त- 4,9 तथा 14 को छोड़कर शनि मंगल को छोड़कर अन्य वार में। मृग, पुन., तीनों उत्तरा, मृग, हस्त्र, चित्रा, अनुराधा श्रवण, रेवती तथा चर, द्विस्वभात लग्न में बहीखाता पूजन श्रेष्ठ होता है।
6. देवादि प्रतिष्ठा, व्रतोद्यापन- शुक्ल पक्ष में, सौमयान में (रिक्त तिथि तथा मंगलवार छोड़कर) स्थिर लगन में देवप्रतिष्ठा, जलाशय प्रतिष्ठा तथा व्रतों का उद्यापन करना चाहिये। जिस देवी देवता की जो तिथि निहित है उस तिथि में प्रतिष्ठा करें।
7. चौल मुण्डल मुहूर्त- चैत्र मास से आषाढ़ तक विषम वर्ष में शुभ दिन सोम, बुध, गुरु और शुक्र। तिथि 2,3,5,7,10,11,13। ज्येष्ठ संतान का ज्येष्ठ मास में मुण्डन वर्जित है।
8. गोद अथवा ओली भरने का मुहूर्त- उ.षा. स्वाति, श्रवण तीनों पूर्वा. अनु., धनि, कृति और विवाह विहित नक्षत्रों में, शुभ दिन व शुभ तिथि में।
9. शुभ नक्षत्र- अश्व, मृग, पुन., स्वाति, ज्ये., अभिजित, श्रवण, धनिष्ठा, शतभिषा, रेवती, हस्त्र, चित्रा। शुभ लग्न-वृष, मिथुन, कर्क, कन्या, तुला, धनु एवं मीन। भद्रा आदि दोष न हो।
10. सूतिका गृह प्रवेश मुहूर्त- रोहिणी, मृगशिरा, पुष्प, स्वाति, शतभिषा, पुनर्वसु, हस्त, धनिष्ठा, अनुराधा, चित्रा, अश्विनी, रेवती तीनों उत्तरा तथा श्रवण नक्षत्र शुभ हैं।
11. स्तनपान मुहूर्त- तीनों उत्तरा, रोहिणी, अश्विनी, पुनर्वसु, रेवती, पुष्य, अनुराधा, श्रवण, मृगशिरा, हस्त्र, चित्रा, स्वाति, धनिष्ठा, शतभिषा व अभिजीत नक्षत्र शुभ हैं।
12. सूतिका स्नान मुहूर्त- रेवती, तीनों उत्तरा, रोहिणी, मृगशिरा, हस्त्र, स्वाति, अश्विनी तथा अनुराधा ये नक्षत्र श्रेष्ठ हैं।
13. नामकरण मुहूर्त- रेवती, पुष्य, चित्रा, अनुराधा, तीनों उत्तरा, रोहिणी, हस्त्र, अश्विनी, तीनों उत्तरा, रोहिणी, अश्विनी, मृगशिरा, पुनर्वसु, स्वाति, श्रवण, धनिष्ठा एवं शतभिषा से नक्षत्र शुभ है।
14. कर्ण वेध मुहूर्त- जन्म से 6ठे, 7वें, 8वें मैस में विषम वर्ष में शुभ दिन एवं दिन एवं शुभ चौघड़िये में कर्ण वेध करना चाहिये। पुरुष का पहले दाहिना तथा लड़की का पहले बायाँ कर्ण छेदें। कर्ण छेदन चैत्र तथा पौष में कदापि न करें।
15. वधू प्रवेश मुहूर्त- रोहिणी, अनुराधा, पुष्य, हस्त्र, चित्रा, स्वाति, मूल श्रवण, धनिष्ठा, शतभिषा, मघा तीनों उत्तरा रेवती, अश्विनी तथा मृगशिरा शुभ नक्षत्र हैं।
16. नवीन गृह-प्रवेश मुहूर्त- तीनों उत्तरा रोहिणी, अनुराधा, मृगशिरा, चित्रा तथा रेवती इन नक्षत्रों में करें। साथ ही इसमें वाम सूर्य का विचार करना चाहिये। गृह प्रवेश हेतु माद्य, फाल्गुन, वैशाख तथा ज्येष्ठ के महीने विशेष शुभ माने गये हैं।
17. नवीन खाट अथवा पलंग पर प्रथम बार शयन करने का मुहूर्त-मूल, रेवती, चित्रा, अनुराधा, तीनों उत्तरा रोहिणी, हस्त, अश्विनी, अभिजीत इन नक्षत्रों को शुभ माना गया है।
18. विवाह मुहूर्त- अनुराधा, मूल, मघा, उत्तराषाढ़ा, रोहिणा, मृगशिरा, उत्तराफाल्गुनी, उत्तराभद्र, हस्त तथा रेवती।
उक्त सभी मुहूर्तों में भद्रा काल योग आदि का भी विचार अवश्य करना चाहिए।
किसी भी शुभ कार्य प्रारम्भ करने से पहले ‘‘श्रीगणेशाय नम:’’ का स्मरण अवश्य कर लें।
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- आद्यकथन
- मुहूर्त ज्ञान
- यात्रा संकेत
- प्राकृतिक उत्पात संकेत
- पशु-पक्षी निमित्त ज्ञान
- जीव निमित्त ज्ञान
- वृक्ष संकेत
- वस्त्रधारण संकेत
- शयन ज्ञान
- पल्लीपतन संकेत
- आहारचर्या संकेत
- पोशाक निमित्त ज्ञान
- भूमिधन संकेत
- नख एवं अंगुली निमित्त ज्ञान
- ग्रहगोचर संकेत
- वर्षा संकेत
- योग संकेत
- ग्रहण संकेत
- मेघ संकेत
- अंग-स्फुरण संकेत
- रुग्णता एवं स्वास्थ्य की पहचान सम्बन्धी ज्ञान
- विरुद्ध आहार ज्ञान
- स्वास्थ्य एवं प्रकृति सम्बन्धी ज्ञान
- तिल संकेत
- मृत्यु संकेत
- मैथुन संकेत
- विवाह निमित्त ज्ञान
- नवीन वस्त्र एवं चिन्ह ज्ञान
- वास्तु संकेत
- स्वास्थ्य सामुद्रिक ज्ञान
- कुदृष्टि (नज़र) निमित्त ज्ञान
- स्वप्न संकेत
- स्वप्न एवं रोग संकेत
- गर्भकाल एवं शिशु संकेत
- केश संकेत
- घर-गृहस्थी निमित्त ज्ञान
- स्त्री एवं सामुद्रिक निमित्त ज्ञान
- मातृका संकेत
- खुजली-दाद संकेत
- छींक संकेत
- कुर्सी-टेबल संकेत
- सिक्के एवं कौड़ी आदि से जुड़े संकेत
- द्वार संकेत
- पूजन संकेत
- प्रातः प्रथम वस्तु दर्शन संकेत
- आभूषण संकेत
- कूप संकेत
- चन्द्र-दर्शन संकेत
- भूमि-जल संकेत
- उल्का पतन संकेत
- कुछ मिश्रित संकेत
- कुछ मिश्रित उत्पात शांति विधान
- सन्दर्भ एवं विशेष आभार
अनुक्रम
अन्य पुस्तकें
लोगों की राय
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