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औघड़ का दान एवं अन्य कहानियाँ

प्रदीप श्रीवास्तव

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2024
पृष्ठ :176
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 16994
आईएसबीएन :9781613017753

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प्रदीप श्रीवास्तव की सात बेहतरीन कहानियाँ

जिन पापा को पहले यह खेती-किसानी, घर-द्वार अच्छा लगता था, वही शादी के चार-छः दिन बाद ही यह सब देखकर चिढ़ने लगे थे। उनको बहुत बुरा लगता था कि दादी किसी के आने पर माँ को बुलातीं और उन्हें खड़ा ही रखतीं, जबकि बाक़ी लोग तख़्त, चारपाई, स्टूल आदि पर बैठते।

आने वाला मेहमान यदि माँ को बैठने को कहता तो उन्हें कोने में लम्बा घूँघट काढ़कर पीढे़ पर ही बैठने की इजाज़त थी। इन सबसे चिढ़े पापा तब अपना विरोध दर्ज कराना रोक न पाये, जब चौथी की रस्म के हफ़्ते भर बाद ही माँ से रसोईघर गोबर से लीपने के लिए कह दिया गया। पहले यह काम दादी ख़ुद करती थीं क्योंकि रसोईघर में काम वाली जा नहीं सकती थी।

उस दिन जब पापा ने देखा कि दादी, माँ से गोबर से रसोई लिपवा रही हैं, और माँ ने क्योंकि पहले कभी यह सब नहीं किया था, तो ठीक से लीप नहीं पा रही थीं। हाँफ अलग रही थीं, पसीने से तरबरतर थीं और दादी पीढ़े पर थोड़ी दूर बैठी माँ को लीपना बता रही थीं। जहाँ ठीक से नहीं हुआ था वहाँ दुबारा करवा रही थीं।

पापा उस समय तो कुछ नहीं बोले थे। रात में माँ की हथेलियों पर उभर आये सुर्ख़ निशानों को कई बार चूमा था और नाराज़ होकर कहा था कि, "मुझसे यह सब देखा नहीं जाएगा।" माँ ने तब उन्हें मना किया था कि, "ससुराल है। घर में तो यह सब होता ही है। अम्मा जी भी तो करती हैं।" तब पापा बोले थे कि, "यह तो उनकी आदत है।" इस पर माँ ने कहा कि, "मेरी भी आदत पड़ जायेगी।"

लेकिन पापा बहस करते रहे। बोले, "तुम मेरी बीवी हो घर की नौकरानी नहीं। मज़दूर नहीं कि तुम्हें मेहमानों के सामने ज़मीन पर बैठाया जाये या खड़ा रखा जाये। गोबर लिपवाया जाये, सुबह भोर से लेकर रात तक काम में पीसा जाये। मुझसे यह सहन नहीं होगा।"

माँ के लाख कहने पर भी पापा नहीं माने थे, और जब अगले दिन माँ फिर चौका लीप रही थीं, दादी पहले की तरह बता रहीं थीं तो पापा ठीक उसी वक़्त आ गये। मानो वह पहले ही से ताक लगाये बैठे थे। वो कुछ बोलते कि उसके पहले ही दादी बोल पड़ीं, "का रे तू मेहरिया के काम का देखा करत है। अरे! घरवे का काम कय रही है। कौउनो बाहर के नाहीं।"

दादी का इतना बोलना था कि पापा फट पड़े थे कि, "वो तो मैं भी देख रहा हूँ कि घर का ही काम कर रही है। लेकिन एकदम मजूरिन बना दिया है। दस दिन भी नहीं हुआ है और कोल्हू के बैल की तरह काम ले रही हो। गोबर लिपवा रही हो।"

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