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सरस गीता

गुरु प्रकाश तिवारी 'सरस'

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2024
पृष्ठ :160
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 16995
आईएसबीएन :9781613017852

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गीता सरस-सरल हिन्दाी मुक्त काव्य में

पावन ग्रन्थ - श्रीमद्भगवद्गीता

 

दुर्योधन के दर्प ने जब पाण्डवों को युद्ध के लिए मजबूर कर दिया, तब कुरुक्षेत्र का मैदान युद्ध हेतु चुना गया, जहाँ पर कौरवों और पाण्डवों की सेनाओं के मध्य खड़े हुये भगवान श्रीकृष्ण द्वारा अर्जुन के माया मोह को दूर करने के लिए निकले हुये शब्द श्रीमद्भ्गवद्गीता के रूप में विश्व के धरातल पर ज्ञान, वैराग्य कर्म भक्ति से भरे हुये सम्पूर्ण जगत के लिए प्रेरणा प्रदक बने। इसीलिए भारतीय न्यायालयों में भी सभी सनातन धर्मग्रन्थों को पीछे करते हुये श्रीमद्भागवद्गीता को श्रेष्ठ माना गया है।

यह पावन ग्रन्थ सांख्यशास्त्र, वेदान्त, अध्यात्म, भक्ति, त्याग, और मोक्ष का माध्यम है -

श्री हरि के मुख से निकली,
गंगा की पावन धारा है।
सांख्यशास्त्र वेदान्त सार,
अरु मोक्ष कर्म का द्वारा है॥

श्रीमद्भषगवद्गीता में अठारह अध्याय व कुल 700 श्लोक हैं पूरी गीता में अध्यात्म, वैराग्य, ज्ञान, भक्ति, रहस्य, कर्म, सांख्यशास्त्र, वेदान्त के माध्यमों से व्यक्ति मोक्ष को प्राप्त करता है।

इस पावन ग्रन्थ पर कुछ लिखना व काव्य का रूप देना मुझ जैसे अल्प ज्ञान वाले व्यक्ति से परे है लेकिन जब लीलाधारी की स्वयं कृपा हो जाती है तो सब कुछ आसान सा लगने लगता है।

उन्हीं की कृपा से 700 श्लोकों को मुक्तकों का प्रारूप देकर काव्य में रस ग्रन्थ, की मर्यादा के आधार पर किया गया है।

कुरुक्षेत्र के मैदान में कौरवों व पाण्डवों की सेनाओं में 18 दिन तक युद्ध चला दोनों सेनाओं को मिलाकर कुल 18 अक्षौहिणी सेना थी, जब कि एक अक्षौहिणी सेना = 21870 रथ, 21870 हाथी, 65610 घुड़सवार, 109350 पैदल सैनिक।

भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन से दसवें अध्याय के 41वें श्लोक में कहा है, जिसका मुक्तक, निम्न प्रकार है।

मैं यश वैभव तेज पुंज,
शक्तियों का शक्ति संबल हूँ।
सब‌की अभिव्यक्ति का धारक,
अंशों का रूप प्रबल हूँ॥

अर्थात सब कुछ मैं ही हूँ।

श्री व्यास जी ने 18 महापुराणों की ही रचना की है, जबकि श्रीमद्भगवद्गीता में 18 अध्याय भी हैं, यह भी एक संयोग है।

काव्य में रस अलंकार व छन्दों का आविर्भाव ग्रन्थ के स्वरूप व मर्यादा का पूरा ध्यान रखकर किया गया है।

प्रत्येक मुक्तक में चरण, मात्रक, प्रवाह - अन्त्यानुप्रास को ध्यान में रखते हुये, भाषा की सरसता को परिमार्जित कर मुक्तक का रूप दिया गया है।

श्रीम‌द्भगवदगीता की मर्यादा व स्वरूप को ध्यान में रखकर हिन्दी काव्य धारा के माध्यम से श्लोकों के अर्थ व भावों को दर्शाया गया है।

निश्चित ही यह पावन ग्रन्थ सम्पूर्ण विश्व के लिए प्रेरणा प्रदक है। क्योंकि जिस अर्जुन को युद्ध से मोह भंग हो गया हो, देश व समाज से विरक्ति हो गई हो, गाण्डीव एक तरफ जिसने फेंक दिया हो, लेकिन यह लीलाधारी की लीला का खेल था अतः अर्जुन को मोह भंग करने के लिए उन्हें दिव्य दृष्टि देकर अपने वास्तविक स्वरूप को दर्शाया जिससे उनका वैराग्य व माया मोह का आवरण हट गया, माधव ने अर्जुन को उपदेशित किया-

माधव के वचनों को सुन,
अर्जुन कर जोड़ काँपता है।
भयातुर होकर नमन किया,
स्वर गदगद शब्द नापता है॥

माधव ने अर्जुन को बीच-बीच में कई बार समझाते हुये कहा है-

हे पार्थ क्षात्र धर्म पालन,
मर्यादा का संरक्षक है।
है कर्म योग का यह साधन,
जय, जन्म, मृत्यु भय रक्षक है।

अतः माधव के दिव्य स्वरूप व उपदेशों को सुनकर अर्जुन का युद्ध से वैराग्य व मोह भंग हो गया और वह युद्ध के लिये कटिबद्ध हो जाते हैं। अत: गीता ग्रन्थ के श्लोकों के आधार पर सरसगीता जो छन्द बद्ध है आपकी सेवा में प्रस्तुत कर रहा हूँ आशा करता हूँ कि पुस्तक आपके जीवन के लिए उपयोगी बनेगी ऐसा, मुझे पूर्ण विश्वास है अवश्य पढ़ें-

हे आदि देव हे जगत नियन्ता,
हे पर ब्रह्म तुमको प्रणाम ।
हे अनन्त देव हे अविनाशी,
नित नमन है आठो याम॥

तुम आदि देव सनातन हो,
परम धाम हो जगताधार।
पूर्ण देव हे पूर्ण ब्रह्म,
हे पूर्णेश्वर नमस्कार॥

'सरस'

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