लोगों की राय
कविता संग्रह >>
वह
वह
प्रकाशक :
भारतीय ज्ञानपीठ |
प्रकाशित वर्ष : 2024 |
पृष्ठ :102
मुखपृष्ठ :
पेपरबैक
|
पुस्तक क्रमांक : 17014
|
आईएसबीएन :9789357755504 |
 |
|
0
5 पाठक हैं
|
अपरिचित संसार की निर्मिति मेरे मन में बसती जा रही धुँधले अस्तित्व वाली ‘वह’ को पहचानना कठिन है। लेकिन यह विश्वास हो रहा है कि अतीत की किसी निर्जनता में उससे हमारा घनिष्ठ परिचय था। उदयन वाजपेयी की कविताओं में अद्भुत करुणा रहती है। वह केवल दार्शनिक स्थिति में नहीं, कविता के अंगों में भी व्याप्त रहते हैं, और वहाँ है, अकेलापन और विषण्णता। शायद इसीलिए उनकी कविताओं को रिक्तता चाहिए जो कोरे काग़ज़ को विस्तारित कर उसे और अधिक शारीरिक रूप दे सके। उदयन की कविताओं का आनुष्ठानिक गठन यूँ ही नहीं हुआ है। आधुनिकतावाद ने हमारे ऊपर जो बोझ लाद दिया है, उससे विछिन्नताबोध और नैराश्यमय अन्तर्जगत की सृष्टि हुई है और विमूर्तता ही उसका उत्स है। इसीलिए उनकी कविताओं में मृतक बोलते हैं, सुनते हैं, पानी बात करता है, हवा भी। छाया को छूने पर ऐसा अहसास होता है जो हमारे रोज़मर्रा के संसार को नकार कर एक अपरिचित संसार की निर्मिति को सम्भव कर देता है। मैं सोचता हूँ कि ऐसा करते समय यानि अन्वेषण को आत्मोन्मुखी करते हुए प्रचलित हिन्दी भाषा एक विपरीत स्थिति में पहुँच जाती है जो अतीत और वर्तमान को एक ऐसे स्तर पर पहुँचा देती है जहाँ सिद्धान्त का कोई अवकाश नहीं रह जाता, सिर्फ़ रहती है, करुणा, करुणा और करुणा की मर्मान्तक उपलब्धि। ‘वह’ उदयन की काव्य साधना के गहरे और समृद्ध रूप का जीवन्त उदाहरण है।
— नीलिम कुमार (असमिया कवि)
मैं उपरोक्त पुस्तक खरीदना चाहता हूँ। भुगतान के लिए मुझे बैंक विवरण भेजें। मेरा डाक का पूर्ण पता निम्न है -
A PHP Error was encountered
Severity: Notice
Message: Undefined index: mxx
Filename: partials/footer.php
Line Number: 7
hellothai