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यन्त्र विधान

योगीराज यशपाल जी

प्रकाशक : रणधीर प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :191
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 17160
आईएसबीएन :0

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"यन्त्रों की गहराइयाँ : प्राचीन प्रतीकों से आधुनिक सफलता की ओर"

यन्त्र विधान में दुर्लभ एवं सुलभ भिन्‍न-भिन्‍न कामनाओं से सम्बन्धित अनेक प्रकार के यन्त्र बताये गये हैं। यह गुरू हृदयों की संचित कृति है जो अनेक वर्षों के शोध के पश्चात्‌ प्रस्तुत हो पाई है।

प्रत्येक साधक की सफलता में उसकी योग्यता श्रद्धा एवं विश्वास ही मौलिक तथ्य है। सत्य तो यह है कि यन्त्र वह आधारशिला है जिन पर देवता निवास करते हैं। अतः यन्त्र को देवस्वरूप मानते हुए ही इनका प्रयोग करना चाहिए।

गुप्त विद्या कल्पतरू श्री यशपाल जी की लेखनी से निःसृत यह कृति अब तक के सुजित साहित्य में विशिष्ट स्थान रखती है। लेखक का मानना है कि आज भी यन्त्रों से सभी कुछ सम्भंव है। यन्त्र विधान की सहायता से आप भी मानवीय क्षमताओं को बढ़ाकर श्रेष्ठ कर्मों को सींचते हुए दिव्यता की ओर बढ़ें।

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