इतिहास और राजनीति >> उत्तर प्रदेश में असहयोग आन्दोलन उत्तर प्रदेश में असहयोग आन्दोलनडॉ. प्रीति त्रिवेदी
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स्वतंत्रता संग्राम का माइक्रो अध्ययन : काबाल टाउन्स के सन्दर्भ मेें
प्रथम अध्याय :
असहयोग आन्दोलन की पृष्ठभूमि
असहयोग आन्दोलन ने पहली बार देश की जनता को इकट्ठा किया। अब भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस पर कोई यह आरोप नहीं लगा सकता था कि वह कुछ मुट्ठी भर लोगों का प्रतिनिधित्व करती है। अब इसके साथ किसान, मजदूर, दस्तकार, व्यापारी, व्यवसायी, कर्मचारी, पुरुष, महिलाएँ, बच्चे-बूढ़े सभी लोग थे। पूरे देश में कहीं कोई ऐसी जगह नहीं थी जहाँ इस आन्दोलन का असर न पड़ा। बात दीगर है कि कहीं असर तेज था, कहीं कम।
वैसे तो असहयोग आन्दोलन आरम्भ होने के कारण रौलट एक्ट, जलियाँवाला बाग हत्याएँ और उसके उपरान्त किए गए अन्याय तथा खिलाफत आन्दोलन में अंग्रेजों द्वारा अपनाई गई दमनकारी नीतियाँ थीं। पर इस आन्दोलन की पृष्ठभूमि बनाने में होमरूल आन्दोलन ने सोते भारतीयों को जगाने का कार्य किया था।
जैसा कि जूडिथ एम. ब्राउन ने लिखा है कि "होमरूल लीग ने वह कार्य रुक-रुक कर किया और उसमें उन्हें बहुत सफलता मिली।"
अतः होमरूल आन्दोलन ने भी कहीं-न-कहीं असहयोग आन्दोलन की पृष्ठभूमि बनाने का कार्य किया।
लखनऊ समझौता भी महत्वपूर्ण था क्योंकि नरम दल व गरम दल और साथ में मुस्लिम लीग के बीच एकता स्थापित की थी जो आने वाले वर्षों में महत्वपूर्ण सिद्ध हुई। इन्हीं विषयों पर उत्तर प्रदेश के संदर्भ में विस्तार प्रस्तुत किया गया है।
होम रूल आन्दोलन
स्वशासन के लिए राष्ट्रीय आन्दोलन के विकास में 'स्वशासन आन्दोलन' ने एक महत्वपूर्ण चरण को पूरा किया। प्रथम विश्व युद्ध के दिनों में जब नरम दल वाले अपनी राजभक्ति की भावना के कारण विह्वल हो चुके थे और उग्रवादी तितर-बितर हो चुके थे, यह केवल होम रूल लीग ही थी जिसने स्वतंत्रता के लिए राष्ट्रवादियों के प्रचार को जारी रखा। स्वशासन आन्दोलन ने राष्ट्रीय आन्दोलन के आधार को विस्तृत किया। इसमें स्त्रियों ने बहुसंख्या में भाग लिया तथा विद्यार्थियों ने इसके संदेशों को ग्रामीण लोगों तक पहुँचाया।
जूडिथ एम. ब्राउन ने लिखा है कि "होम रूल लीग ने वह कार्य रुक-रुक कर किया जिसे गाँधी जी ने आगे चलकर अत्यन्त निर्भीकता से किया और जिसमें उन्हें बहुत सफलता मिली। उन्होंने उस पद्धति की व्यवस्था की जिसका आगे गाँधी जी ने विकास किया। इस तरह अब उन्होंने (एनीबिसेन्ट) उन क्षेत्रों को प्रभावित करना आरम्भ किया जहाँ से गाँधी जी को आगे चलकर अत्यधिक समर्थन मिला।"
बिपिन चन्द्र लिखते हैं कि 'होम रूल लीग' ने गाँवों और शहरों को जोड़ा जिसका महत्व आने वाले दिनों में ज्ञात हुआ। अतः इससे यह पता चलता है कि प्रथम विश्व युद्ध के दौरान जब देश में कुछ समय के लिए राष्ट्रीय स्तर पर शान्ति आ गई, तब इस आन्दोलन ने राष्ट्र को जगाने का कार्य किया जो आने वाले समय में असहयोग आन्दोलन के लिए महत्वपूर्ण सिद्ध हुआ।
H. H. Dodwell के अनुसार "She (Annie Besant) merely wanted to awaken the people of India out of their slumber. She declared, "I am an Indian Tom, Tom, awaking up all the sleepers so that they make awake and work for their mother land"] और उद्देश्य में वे बहुत हद तक सफल भी रहीं।
राष्ट्रीय स्तर पर होम रूल लीग (स्वशासन की माँग)
बाल गंगाधर तिलक 16 जून 1914 को 6 साल की लम्बी सजा काट कर जेल से बाहर आए। जब वह जेल से छूट कर भारत लौटे तो उन्हें लगा कि वह जिस देश को छोड़कर गए थे, वह काफी बदल गया है। स्वदेशी आन्दोलन के क्रान्तिकारी नेता अरविन्द घोष कांग्रेस सूरत के विभाजन, स्वदेशी आन्दोलनकारियों पर अंग्रेजी हुकूमत के दमनकारी प्रहारों और 1909 के संवैधानिक सुधारों के कारण नरमपंथी राष्ट्रवादियों को निराशा हाथ लग रही थी।
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