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वैवाहिक परम्परायें

डॉ. प्रीति त्रिवेदी

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2024
पृष्ठ :64
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 17207
आईएसबीएन :9781613017951

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अवध क्षेत्र की वैवाहिक परम्परायें गीतों सहित

प्रिय पाठकों,

    प्रस्तुत पुस्तक उन सभी पाठकों को समर्पित है जो अपनी संस्कृति एवं परम्पराओं को प्रगति का आधार मानते हैं। अवध की गंगा-जमुनी संस्कृति सम्पूर्ण भारत या यों कहा जाये सम्पूर्ण विश्व में अपना एक स्थान रखती है। शिक्षा एवं वैज्ञानिक प्रगति के साथ-साथ यहाँ की मस्ती एवं हँसी-ठठ्ठा भी यहाँ के जीवन में एक अलग रस घोलता है।

    अवधी संस्कृति ने सम्पूर्ण विश्व में अपनी एक अलग छाप छोड़ी है। यहाँ के शिक्षाविद, वैज्ञानिक, डाक्टर, शिक्षक, व्यापारी, राजनीतिज्ञ, कवि, गायक कलाकार, संगीतकार आदि सम्पूर्ण देश में ही नहीं सम्पूर्ण विश्व में भी अपना अलग महत्व रखते हैं। इस प्रदेश ने भारत को स्वतन्त्रता सेनानी, नेता, क्रान्तिकारी तथा सैनिक भी प्रदान किये हैं।

    तेजी से बढ़ते वैश्वीकरण ने अवधी संस्कृति को भी समेटने की कोशिश करना शुरू कर दिया है। भारत के विशाल नगरों की व्यस्तता ने छठी, अन्नप्राशन, मुण्डन, छेदन, पाटी पूजन, जनेऊ, विवाह आदि संस्कारों को एक प्रकार से समाप्त सा कर दिया है।

    किन्तु अवध और उसमें भी कानपुर अपने अलबेलेपन को आज भी बचाये हुए है। अद्भुत अवधी संस्कृति अभी भी कनपुरिया जीवन की आत्मा है।

    हमारी नई पीढ़ी शायद अब यह भी न जानती हो कि यहाँ के ब्राह्मण परिवारों में 20 वीं शताब्दी के प्रारम्भ तक शत-प्रतिशत विवाह सम्बन्ध षटकुल में ही होते थे। षटकुल में वे सब ब्राह्मण परिवार सम्मिलित थे जो सोलह बिसवा से अधिक के ब्राह्मण थे तथा जिनके गोत्र थे – कश्यप, शान्डिल्य, सांकृत, उपमन्यु, कात्यायन, भारद्वाज।

अन्य ब्राह्मण कनौजिया (कान्यकुब्ज) कहलाते थे। षटकुल में होने वाले विवाहों एवं इन परिवारों में जन्म लेने वाली सन्तानों को वैज्ञानिक आधार पर भी मान्यता दी जाती रही है।

समय के परिवर्तन के साथ यहाँ के जीवन में भी आधुनिकता का पुट आ गया। विवाहों में भी इतनी कड़ी व्यवस्थाओं को नवीन सामाजिक आवश्यकताओं ने थोड़ा लचीला कर दिया। किन्तु विवाह के सम्पूर्ण रीति-रिवाज़ अभी भी भारतीय सामाजिक व्यवस्था की रक्षा करने के साथ-साथ वैज्ञानिक आधार पर भी खरे उतरते हैं।

इसी उद्देश्य को लेकर प्रस्तुत पुस्तक में अवधी विवाहों की लगभग सभी परम्पराओं को समेटते हुए उन पाठकों के लिये एक उपहार प्रस्तुत कर रही हूँ जो भारतीय संस्कृति की रक्षा के साथ-साथ सनातनी परम्पराओं को जीवित रखने के इच्छुक हैं।

लुप्तप्राय होती भारतीय संस्कृति एवं परम्पराओं की रक्षा का यह एक छोटा सा प्रयास है। भारत सदा से ही अपनी सनातन संस्कृति के लिये जाना जाता है तथा इस सनातन संस्कृति का हृदय अवध है। अवधी जीवन अभी भी कानपुर में जीवन्त है। हम सभी हिन्दुत्व तथा सनातन के केन्द्र कानपुर को इन परम्पराओं के साथ शाश्वत रखना चाहेंगे।

- प्रीति त्रिवेदी

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