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का चुप साधि रहा...

राजू बलिहाटी

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2024
पृष्ठ :128
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 17211
आईएसबीएन :9781613017289

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सेल्प-हेल्प



प्रार्थना



सुबह-सुबह दस मिनट ऊपर वाले के साथ बिताने से हमारे आत्म-विश्वास में बढ़ोत्तरी होती है। हमें अपने दिन की शुरुआत उसको याद करके व धन्यवाद देकर करना चाहिए, जिसने हमें इतना बेशकीमती शरीर दिया है। जरूरी नहीं है कि हम वो सारे कर्मकाण्ड करें जो किसी मत-मतांतरों में बताए गए हैं। हम तो केवल उसको शुद्ध अन्तःकरण से जिस रूप में है उसी रूप में उसे याद कर सकते हैं। वो सदैव हमारी मदद करने के लिए तैयार है। बस हमें अपने सांसारिक जीवन में से कुछ पल उसके साथ बिताना है। ये कुछ पल हमें आत्म-विश्वास व सकारात्मक ऊर्जा से भर देगें। जब हम रास्ते से भटकते हैं, सही रास्ता भी वही दिखाता है। प्रार्थना में केवल याचना ही नहीं होनी चाहिए, उसको पता है कि हमें क्या चाहिए? निःस्वार्थ भाव से ऊपर वाले को याद करें। हमेशा यह प्रतीत होगा कि वह आपके साथ कदम से कदम मिलाकर साथ चल रहा है। आप को कभी किसी मोड़ पर यू टर्न लेने की जरूरत नहीं पड़ेगी। जहाँ हमारा कदम गलत पड़ना शुरू होता है वहीं वो हमें रोकता है। बस हमें उसके इशारे को समझने की जरूरत है।
हम अपनी आत्मा की आवाज को सुनना शुरू कर दे, जो खुद उस परमात्मा का ही अंश है। जीवन की बहुत सारी अनचाही परिस्थितियों से बच सकते हैं, आप का अपने इष्ट पर विश्वास आपको कभी भी अभिमानी नहीं बनाता। साथी ही जब कभी हम जीवन में असफलता का सामना करते है तो वो इतनी घातक नहीं होती कि हम उसका सामना ही न कर पाएँ। हम उपासना करते हैं या नहीं करते, अन्तर सिर्फ इतना पड़ता है कि उपासना करने से हमारे अन्दर उसकी आवाज सुनने की क्षमता उत्पन्न हो जाती है। हम आसानी से सफलता और असफलता को पचा लेते हैं, हमारे पांव जमीन पर ही रहते हैं। बड़े छोटों की इज्जत करते हैं। सबसे बढ़कर एक दिव्य ज्योति पुंज का आभास होता है, जो हमारे जीवन के लिए बहुत जरूरी होता है। आप उस दृष्टांत को याद करें जब गंगा किनारे संत रविदास बैठ के गाना गा रहे थे - मन चंगा तो कठौती में गंगा।
उसी समय एक औरत का कंगन गंगा नदी में गिर जाता है वो ढूँढ-ढूँढ के परेशान थी, उसने चीखना चिल्लाना शुरू कर दिया। उधर रविदास जी ध्यान मग्न होकर अपने शब्दों को दोहरा रहे थे। जब उनके सामने से वो महिला गुजरी तो उसने उनको हिला के बोला चुप हो जा झूठमूठ का – मन चंगा तो कठौती में गंगा गा रहे हो, मैं घंटों से अपना कंगन ढूँढ़ रही हूँ। तुम्हें इतना विश्वास है उस पर तो मेरा कंगन ढूँढ़ के दिखा दो।
अनायास किसी के द्वारा ध्यान भंग करने के कारण रविदास उस महिला की तरफ देखने लगे। कोई दूसरा साधु होता जिसमें आत्मबल नहीं होता तो शायद इस बात को आया गया कर देता पर रविदास जी को अपने व अपने ईश्वर के ऊपर इतना विश्वास था कि उन्होंने औरत से परात (कठौती) में पानी लाने को कहा। जैसे उस महिला ने पानी लाया शुद्ध अन्तःकरण से अपने परमात्मा को याद करते हुए उन्होनें कंगन निकाल कर दे दिया। यह कैसे सम्भव हुआ? आज बड़े ध्यान से उस वाकये को समझा जाए तो उनका आत्मबल जो अटूट था अपने इष्ट पर, उनको मदद करनी ही पड़ी।
हो सकता है यह दृष्टांत आपको किंवदन्ती लगे पर यह हमें इतना आभास कराने में समर्थ है कि उस पर अगर अटूट आस्था रहे तो आप असम्भव को भी सम्भव कर सकते हैं। आपको हमेशा यह लगेगा कि आपके साथ कोई है, जो कदम से कदम मिलाकर आपके साथ चल रहा है। यह तभी सम्भव होगा जब आपकी आस्था में किन्तु-परन्तु नहीं होगा सिर्फ एक विश्वास होगा कि वो सदा मेरे साथ, मेरी मदद, मेरे मार्गदर्शन के लिए खड़ा है।
यकीनन आप एक संतुलित जीवन के स्वामी होंगे।     

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