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राष्ट्रीय आन्दोलन और साहित्य

वीर भारत तलवार

प्रकाशक : वाणी प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2024
पृष्ठ :260
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 17224
आईएसबीएन :9789362875082

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"राष्ट्रीय आंदोलन और साम्प्रदायिकता के बीच संघर्ष : प्रेमचन्द और गणेश शंकर विद्यार्थी का दृष्टिकोण।"

प्रेमचन्द हिन्दी में राष्ट्रीय आन्दोलन के दौर के सर्वश्रेष्ठ लेखक थे। फ़िल्म जगत के साथ उनकी टकराहट औपनिवेशिक संस्कृति में पल रहे पूँजीवादी व्यवसाय के साथ राष्ट्रीय आन्दोलन की ही टकराहट थी। लेकिन, राष्ट्रीय आन्दोलन का यह पक्ष कितना कमज़ोर था; इस टकराहट में हिन्दी का सर्वश्रेष्ठ लेखक भी कितनी कमज़ोर ज़मीन पर खड़ा था, इसे देखना हिन्दी की जातीय परम्परा की एक दुखती हुई नस को टटोलना है।

★★★

प्रेमचन्द फ़िल्मी दुनिया से लौट गये। ‘चित्रपट’ का आन्दोलन भी अगले कुछ सालों के बाद टूट गया। हिन्दी फ़िल्में राष्ट्रीय आन्दोलन का अंग न बन सकीं। हिन्दी फ़िल्में हिन्दी की जातीय संस्कृति से दूर ही रहीं; आज भी दूर हैं। इसके कारण क्या हैं ?

★★★

कानपुर से गणेशशंकर विद्यार्थी के सम्पादन में प्रकाशित होने वाला साप्ताहिक ‘प्रताप’ हिन्दी प्रदेश में एक नयी जनवादी चेतना फैलाने वाले अग्रदूतों में था। ‘प्रताप’ ने हिन्दी प्रदेश के मज़दूर-किसानों में राजनीतिक चेतना जगाने में अपनी भूमिका निभायी। भारत के बुर्जुआ राष्ट्रवादी आन्दोलन में एक बड़ी समस्या जनता की एकता में बाधक साम्प्रदायिकता की थी। बुर्जुआ नेतृत्व अन्त तक इस समस्या का हल न निकाल सका। हल निकालना तो दूर रहा, राष्ट्रीय नेतागण स्वयं साम्राज्यवाद-विरोधी संघर्ष को हिन्दू या मुस्लिम धार्मिक चेतना और प्रतीकों से जोड़कर, उसे धार्मिक रंग देकर संकीर्ण बना रहे थे। हिन्दू-मुस्लिम दंगों में शहीद होने वाले गणेशशंकर विद्यार्थी का महत्त्व यह है कि वे बहुत शुरू से ही साम्राज्यवाद विरोधी राजनीतिक संघर्ष को धर्मनिरपेक्ष चरित्र देने के लिए संघर्ष चला रहे थे। इसके लिए एक ओर तो उन्होंने स्वाधीनता आन्दोलन को मज़दूर-किसानों के बीच पहुँचाने का प्रयत्न किया, दूसरी ओर साम्प्रदायिकतावाद का विरोध किया। जिस ज़माने में मदनमोहन मालवीय, तिलक, गांधी और मोहम्मद अली, शौकत अली सब के सब राजनीति को धर्म के साथ मिलाकर पेश करते थे, उस ज़माने में ‘प्रताप’ (21 जून 1915) में ‘राष्ट्रीयता’ शीर्षक लेख में उन्होंने लिखा कि, “राष्ट्रीयता धार्मिक सिद्धान्तों का दायरा नहीं है।” उन्होंने राष्ट्रीय जागरण को एक अन्तरराष्ट्रीय लहर बतलाया। जो लोग ‘हिन्दू राष्ट्र, हिन्दू राष्ट्र’ चिल्लाते हैं, उनके बारे में उन्होंने लिखा कि ऐसे लोग बड़ी भूल करते हैं और उन्होंने अभी तक राष्ट्र शब्द के अर्थ नहीं समझे हैं।

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