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सामना
सामना
प्रकाशक :
वाणी प्रकाशन |
प्रकाशित वर्ष : 2020 |
पृष्ठ :340
मुखपृष्ठ :
सजिल्द
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पुस्तक क्रमांक : 17226
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आईएसबीएन :9788181433480 |
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"वीर भारत तलवार की आलोचना : गहरे विश्लेषण से साहित्य की नई राह तक।"
वीर भारत तलवार ने हिन्दी आलोचना में अपने लिए अलग राह निकाली है। बड़े नामों से आतंकित हए बिना वे न सिर्फ़ उनकी स्थापनाओं से असहमति प्रकट करने का साहस रखते हैं बल्कि अपनी असहमति और अपनी स्थापनाओं को पूरे तथ्यों और तर्कों के साथ प्रमाणित भी करते हैं। उनके लेखों में जितनी गम्भीरता और ईमानदारी होती है, उतना ही अध्ययन और परिश्रम भी झलकता है। प्रश्नों के उत्तर पाने के लिए वे मुद्दों की जड़ों तक जाते हैं, अपने विषय का दूर तक पीछा करते हैं। इस संकलन में शामिल रामविलास शर्मा पर लिखे गये लेख इसका जीवन्त उदाहरण हैं। हिन्दी में रामविलास शर्मा के भक्त तो कई हैं और विरोधी भी, लेकिन उनके विवेचन की बुनियादी खामियों को ठोस तथ्यों और तर्को से साबित करते हुए उजागर करने का काम वीर भारत ने ही किया है। यह ध्यान देने लायक है कि ऐसा करते हुए उन्होंने न तो रामविलास शर्मा के व्यक्तित्व के प्रति अनादर भाव दिखलाया और न ही माक्सवाद का विरोध किया। उलटे ऐसा करते हुए उन्होंने माक्सवाद की मूल भावना को ही स्पष्ट करने का प्रयास किया है। उनकी गम्भीर, विश्लेषणपरक आलोचना की यही विशेषता हजारीप्रसाद द्विवेदी, नामवर सिंह, निर्मल वर्मा, हरिशंकर परसाई तथा दूसरों की आलोचना में भी दिखाई देती है। इससे बिल्कुल भिन्न किस्म का स्वाद उनके यात्रा संस्मरण चुनार के किले को पढ़कर मिलता है। ऐसा लालित्यबोध, तीव्र अनुभूतिशीलता, कल्पना की उड़ान और भाषा की सृजनात्मकता उनके साहित्यिक व्यक्तित्व के एक बिल्कुल अलग, अनजाने पक्ष को सामने लाती है। सहृदय पाठक का ध्यान इन लेखों के साफ़-सुथरे, प्रभावशाली और पारदर्शी गद्य पर भी गये बिना नहीं रह सकता।
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