आलोचना >> भारत की अवधारणा भारत की अवधारणाशंभुनाथ
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"भारत की अवधारणा : साझा सच और मनुष्यता के पुनर्निर्माण की खोज"
भारत में एक नया भारत जन्मा है। धर्म, इतिहास, साहित्य, संस्कृति और राजनीति ही नहीं, सामाजिक जीवन की बहुत सारी चीजों के अर्थ बदलते जा रहे हैं। विश्व भर में सांस्कृतिक सिकुड़न के हिंसक दृश्य हैं। भारत की अवधारणा इस देश की सभ्यता की खोज के साथ 21वीं सदी के बदलावों का मूल्यांकन है। परंपराओं से संवाद करते हुए यह पुस्तक उन तथ्यों, मूल्यों और स्वप्नों को सामने लाती है जिन्हें वर्तमान समय में बुलडोजर किया जा रहा है। नये भारत में भारत का इतिहास और भविष्य-दृष्टि भग्नावस्था में है। पोस्ट टूथ का जमाना है और झूठ दिग्विजय पर है। विमर्शों को पीछे छोड़ते हुए महाविमर्श है।
इन स्थितियों में शंभुनाथ की पुस्तक भारत की अवधारणा एक राष्ट्रीय महाख्यान की खोज है जो साझा सच, आम असहमति और मनुष्यता के पुनर्निर्माण की राहें खोलती है। सभ्यता विमर्श को नया मोड़ देने वाले सुपरिचित लेखक शंभुनाथ वर्तमान समय की विडंबनाओं और संभावनाओं की इस पुस्तक में प्रखर आलोचनात्मक विवेचना करते हैं। यह जितनी रोचक है, उतनी ही पारदर्शी। क्या भारत अभी भी सोच सकता है ? वैचारिक संकट के दौर में यह पुस्तक प्राचीन और आधुनिक दृष्टांतों के बीच से यही कहती है-हाँ, भारत सोचता है।
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