" />
लोगों की राय

कविता संग्रह >> कोलाहल की कविताएँ

कोलाहल की कविताएँ

अम्बर पाण्डेय

प्रकाशक : वाणी प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2018
पृष्ठ :144
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 17242
आईएसबीएन :9789388434157

Like this Hindi book 0

5 पाठक हैं

"भाषा और प्रेम के कोलाहल में, जहाँ परंपरा और आधुनिकता मिलती हैं।"

कोलाहल की कविताएँ – जैसे लोककथा के जंगल की सूनी कुटिया में अकेली ही डोल रही किसी पुरातन चिराग़ की लौ आँधियों में घिरे भूले-भटके राही को सहज ही अपनी ओर आकर्षित कर लेती है, युवा कवि अम्बर की ये कविताएँ भी ! चौखट पर पाँव धरते ही जातीय स्मृतियाँ देवी के अट्टहास की तरह हमारा सनातन अँधेरा एक विलक्षण कौंध में अंकवार लेती हैं और देश-काल की सीमाएँ ढह-सी जाती हैं कुछ देर की ख़ातिर! अम्बर की सबसे ख़ास बात है उसका समृद्ध भाषिक अवचेतन ! एक तरफ लोकाख्यान, मिथक और प्राचीन रीतिग्रन्थों से तन्मय अन्तःसंवाद और दूसरी ओर इंटरनेटदीपित संसार की विषम और विवादी स्वरलहरियाँ और अन्य ध्वनियाँ या साउण्ड बाइट्स मिल-जुलकर एक संश्लिष्ट अर्थग्राम रचते हैं जो इतना ही बहुरंगी, बहुध्वन्यात्मक और खुला हुआ है जितना हमारा अपना वजूद, इतिहास और अपनी गंगाजमनी तहज़ीब !

सर्वोछेदन के ख़िलाफ़ रूढ़िमुक्त परम्परा की बैटरी रीचार्ज करने की धुन उत्तर- औपनिवेशिक प्रतिकार का एक आजमाया हुआ अस्त्र है- अम्बर फ़िल्मस्टडीज़ के सफल प्रयोक्ता होने के नाते भी समझते हैं ! मांटॉज़, फ़ोकल शिफ्ट, जक्स्टपज़िशन, टेलेस्कोपिंग आदि तकनीकें इन्होंने इस तरह अपनी प्रेम कविताओं में बरती हैं कि बार्बी डॉल बनकर काउण्टर पर बिकने को अभिशापित स्त्री शरीर और परमक्लान्त, बैरागी स्त्री मन में भी स्पन्दन और रसधार थिरक जाये ! वेश्याओं के बुखार और हर्पीज़ की चिन्ता है यहाँ, लम्बी भूख के बाद के भात का आस्वाद भी ! गीतगोविन्द के सूफ़ियाना संस्करण की तरह हम इन्हें पढ़ सकते हैं ! भाषा को भी स्त्री से एकात्म करके पढ़ता है यह नवल पुरुष और एक सूफ़ीमन की तरलता के साथ जो कहीं बँधती नहीं पर ऊसर में भी घास उगा देती है !

– अनामिका

प्रथम पृष्ठ

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book