इतिहास और राजनीति >> मध्य एशिया का इतिहास : भाग - 1-2 मध्य एशिया का इतिहास : भाग - 1-2राहुल सांकृत्यायन
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"मध्य एशिया का इतिहास : भारत के इतिहास की अनदेखी कड़ियाँ"
भारत के इतिहास की जगह मध्य एशिया के इतिहास पर मैंने क्यों कलम उठाई, यह प्रश्न हो सकता है। उत्तर आसान है। भारत के इतिहास पर लिखनेवाले बहुत हैं। जिसका अभाव है, उसकी पूर्ति करना जरूरी था, यही विचार इस प्रयास का कारण हुआ। अपनी यात्राओं में मैं रूस और मध्य एशिया के सम्पर्क में आया, उनके ऊपर कितनी ही पुस्तकें लिखीं और अनुवादित कीं। उसी समय विचार आया, आधुनिक ऐतिहासिक घटनाओं को पिछले इतिहास की पृष्ठभूमि में देखना चाहिए। इस तरफ आगे बढ़ा, तो यह भी मालूम हुआ मध्य एशिया का इतिहास हमारे देश के इतिहास से बहुत घनिष्ठ सम्बन्ध रखता है।
द्रविड़ (फिनो–द्रविड़) जाति – जिसने मोहनजोदड़ो और हड़प्पा के भव्य नगर और यशस्वी सिन्धु-सभ्यता प्रदान की का सम्बन्ध मध्य एशिया से भी था। हाल के पुरातात्त्विक अनुसन्धान बतलाते हैं कि आर्यों का सम्पर्क द्रविड़़ जाति से सबसे पहले सिन्धु-उपत्यका में नहीं, बल्कि ख्वारेज्म में हुआ था। वहाँ पराजित करके उनका स्थान ले आर्य भारत की ओर बढ़े। उनका बढ़ाव पिछली विजित भूमि को बिना छोड़े आगे की तरफ होता रहा, इसलिए भारतीय आर्यों की परम्परा में अपने पुराने छोड़े हुए स्थान का उल्लेख नहीं पाया जाता। आर्यों की अनेक लहरों के बाद ग्रीक लोगों ने भी बाख्त्रिया से आकर भारत के कुछ भाग पर शासन किया। शक-कुषाण भी वहाँ से ही होकर आये। तथाकथित हूण-हेफताल-भी मध्य एशिया से भारत की ओर बढ़े। तुर्क और इस्लाम भी वहाँ से चलकर भारत आया। इन शासकों और उनकी जातियों के इतिहास का एक भाग मध्य एशिया में पड़ा रहा, जिसे जाने बिना हम अपने इतिहास को समझने में गलती कर बैठते हैं। इस दृष्टि से भी मुझे इस पुस्तक को लिखने की प्रेरणा मिली।
– राहुल सांकृत्यायन
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