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लोकतंत्र की चौकीदारी

स्टीवेन लेवित्सकी और डेनियल ज़ि‍ब्लाट

प्रकाशक : राजकमल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2025
पृष्ठ :272
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 17257
आईएसबीएन :9789360868185

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लोकतंत्र तख़्तापलट से नहीं, खामोशी से मरता है — इसे बचाने से पहले जानना ज़रूरी है कि यह कैसे मरता है।

लोकतंत्र कैसे ख़त्म होता है ? अपने लोकतंत्र को बचाने के लिए हम क्‍या कर सकते हैं ? इतिहास हमें क्‍या सिखाता है ?

इक्‍कीसवीं सदी में लोकतंत्र जितना ख़तरे में है, पहले कभी नहीं रहा। समूचे इतिहास से सबक लेते हुए—चिली में पिनोशे की ख़ूनी सत्ता से लेकर चुपचाप ढहते तुर्की में एर्दुआं की सरकार तक—हार्वर्ड के प्रोफ़ेसर स्‍टीवेन लेवित्‍सकी और डेनियल ज़िब्‍लाट यह समझाते हैं कि लोकतंत्र क्‍यों नाकाम हो जाते हैं, ट्रम्‍प जैसे नेता कैसे उसे नष्‍ट करते हैं और अपने लोकतांत्रिक अधिकारों की रक्षा के लिए हम में से हर एक व्‍यक्ति क्‍या कर सकता है।

विशेषज्ञों की राय

जो भी लोकतंत्र के भविष्‍य को लेकर चिन्तित है उसे यह सहज, सरल किताब पढ़नी चाहिए। जो चिन्तित नहीं हैं, उन्‍हें तो ज़रूर पढ़नी चाहिए।

— दारोन एसेमोगलू

‘व्हाई नेशंस फ़ेल’ के लेखक और 2024 के नोबेल पुरस्‍कार विजेता लेवित्‍सकी और ज़ि‍ब्‍लाट ने कितनी कुशलता से यह दलील रखी है कि हम सबको इस देश के रुझानों पर चिन्तित होना चाहिए, अमेरिकी संविधान का ज़बर्दस्‍त प्रशंसक होने के नाते मेरे लिए यह पढ़ना हताशाजनक था। ‘यह यहाँ नहीं हो सकता’ वाली धारणा लेवित्‍सकी और ज़िब्‍लाट के विश्‍लेषण में नहीं टिकती...क्‍या शानदार लिखा है।

— डेनियल डब्‍ल्‍यू. ड्रेज़नर

  ‘वॉशिंगटन पोस्‍ट’

उत्कृष्ट, विद्वत्तापूर्ण, पठनीय, चिन्ताजनक और सन्तुलित

—निक कोहेन ‘ऑब्ज़र्वर’

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