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नारी विमर्श >> स्त्री समस्या

स्त्री समस्या

गरिमा श्रीवास्तव

प्रकाशक : नयी किताब प्रकाशित वर्ष : 2018
पृष्ठ :224
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 17262
आईएसबीएन :9789387145313

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"स्वाधीनता संग्राम से स्त्री जागरण तक — आत्मबल, चेतना और परिवर्तन की कहानी"

स्वाधीनता आन्दोलन में स्त्रियों ने बढ़ चढ़ कर भाग लिया, विभिन्न गतिविधियों में उन्होंने आशा से दस गुना अधिक उत्साह का परिचय दिया, आत्मत्याग, सामूहिक चेतना का स्त्री पक्ष देखना हो तो भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन की ओर देखना चाहिए। एनी बेसेंट ने तो यहाँ तक कहा कि होमरूल आन्दोलन में भारतीय स्त्रियों की भागीदारी उच्च श्रेणी की थी। उन्होंने घर-घर जाकर जन-चेतना जगाने का काम किया। भारतीय स्वाधीनता संग्राम का व्यापक प्रभाव स्त्री-आन्दोलन पर भी पड़ा। चाहे वह सत्याग्रह हो या शराब और विदेशी कपड़ों की दुकानों की पिकेटिंग या गाँधी का चरखा आह्वान-सब जगह स्त्रियों की भागीदारी काबिले तारीफ रही। इस तरह राष्ट्रीय आन्दोलन ने स्त्रियों को राजनीतिक क्रियाकलापों में शामिल होने का अवसर ही नहीं दिया बल्कि स्त्रीवाद के भविष्य की सुदृढ़ नींव भी रखी। इस दौर की एक खासियत यह भी रही कि औपनिवेशिक शक्तियों और उपनेवेषित समूह दोनों तरफ से ऐसी कई संस्थाएँ अस्तित्व में आयीं जो सामाजिक और राजनीतिक संघर्षों का प्रतिनिधित्व करती थीं। इन संस्थाओं ने सोची-समझी रणनीति के तहत सुधारों को जनता के बीच पहुँचाने के लिए छपे हुए शब्द को हथियार बनाया। इसी दौरान स्त्री धर्म, स्त्री दर्पण जैसी कुछ महत्वपूर्ण पत्रिकाएँ प्रकाशित हुईं । स्त्री धर्म पत्रिका, जिसे आगे चलकर कमला देवी चट्टोपाध्याय ने संभाला, की शुरुआत मार्गरेट कजिन्स नामक आयरिश सुफ्रागेट ने की थी जो 1915 में भारत आयीं थीं। इस पत्रिका को डा मुत्तुलक्ष्मी रेड्डी ने भी अपनी सम्पादकीय सेवाएँ दी थीं। यह पहली पत्रिका थी जिसमें भारतीय परिप्रेक्ष्य में स्त्री-आन्दोलन पर गहन विचार-विमर्श हुआ, जनवरी 1918 से अगस्त 1936 के बीच लगातार निकलने वाली इस पत्रिका में पश्चिमी स्त्री आन्दोलन और भारतीय स्त्री आन्दोलन के तुलनात्मक परिदृश्य पर कई स्तरीय लेख छपे। यह अपने ढंग की एक विशिष्ट पत्रिका थी जिसमें अंग्रेजी, हिन्दी, तमिल और तेलुगु भाषा में लेख छपते थे। तत्कालीन भारतीय स्त्री आन्दोलन के स्वरुप और संवेदना का खाका इस पत्रिका के लेखों के माध्यम से जाना जा सकता है।

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