यात्रा वृत्तांत >> देह ही देश : क्रोएशिया प्रवास डायरी देह ही देश : क्रोएशिया प्रवास डायरीगरिमा श्रीवास्तव
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"शरीर से सरहद तक—एक डायरी, जो चुप्पियों को तोड़ती है"
इस डायरी में पाठक ज्यों-ज्यों आगे बढ़ता है, लगता है कोई तेज़ नश्तर उसके सीने पर रख दिया गया है और पृष्ठ-दर-पृष्ठ उसे भीतर उतारा जा रहा है। हिन्दी में ऐसे लेखन और ऐसी यात्राओं का जितना स्वागत किया जाए, कम है।
— नित्यानंद तिवारी
आलोचक
यह सिर्फ़ डायरी नहीं यात्रा भी है, बाहर से भीतर और देह से देश की, जो बताती है कि देह पर ही सारी लड़ाइयाँ लड़ी जाती हैं और सरहदें तय होती हैं।
— अभय कुमार दुबे
राजनीतिक विश्लेषक
ऐसे लोग जो भीड़ की हिंसा के समर्थन में होते हैं, उन्हें यह डायरीनुमा किताब दी जाए तो वे क्या करेंगे, अपनी चुप्पी पर झुंझलाते हुए इसे जला देंगे? मेरे ख़याल से उन्हें जलाने के लिए ही सही यह डायरी पढ़नी चाहिए।
— रवीश कुमार
पत्रकार
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