"> " />
लोगों की राय

नारी विमर्श >> हिन्दी काव्य की कोकिलाएँ

हिन्दी काव्य की कोकिलाएँ

गरिमा श्रीवास्तव

प्रकाशक : नयी किताब प्रकाशित वर्ष : 2019
पृष्ठ :200
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 17267
आईएसबीएन :9789387145900

Like this Hindi book 0

5 पाठक हैं

"अनकही आवाज़ें — हिंदी की पहली महिला कवयित्री आलोचनात्मक संकलन"

इस पुस्तक का संपादन गिरिजादत्त शुक्ल एवं ब्रजभूषण शुक्ल द्वारा सन 1933 में और प्रकाशन भगवतीप्रसाद वाजपेयी द्वारा साहित्य-मंदिर प्रयाग से किया गया। श्री कृष्णकान्त मालवीय ने मूल संकलन के प्राक्कथन में कहा- हिंदी साहित्य के स्वरूप-निर्माण में हमारी देवियों ने जो भाग लिया है, उसकी ओर हिंदी के समालोचकों का ध्यान अभी विशेष रूप से आकृष्ट नहीं हुआ था। इस ग्रन्थ के लेखकों ने इस अभाव की पूर्ति का उद्योग किया है…. जहाँ तक मुझे स्मरण है, हिंदी के पुरुष कवियों की कविताओं का भी ऐसा कोई आलोचनात्मक संग्रह नहीं है, जिसमें किसी प्रकार के वर्गीकरण का प्रयत्न किया गया हो, अथवा उनकी प्रवृत्तियों की आलोचना की गयी हो…” इस दृष्टि से देखें तो सन 1933 में प्रकाशित यह पहली पुस्तक है जिसमें मीराबाई से लेकर लीलावती भंवर तक 31 कवयित्रियों की चुनिन्दा रचनाओं के साथ उनके रचना कर्म पर आलोचनात्मक टिप्पणी संकलित है। हालाँकि कवयित्रियों की रचनाओं पर जो टिप्पणियां की गयी हैं वे बहुत सतही और एक सीमा तक प्रभाववादी हैं, उनमें किसी गहरे विश्लेषण का अभाव दीखता है साथ ही नैतिकता के प्रति आग्रह इस हद तक है कि संपादक-द्वय रचनाकारों को विषय-वस्तु के चुनाव सम्बन्धी सलाहें भी देते दीख पड़ते हैं, निश्चित रूप से इसे स्त्रियों पर लगायी जाने वाली ‘सेंसरशिप’ के रूप में देखा जाना चाहिए। मसलन रामेश्वरीदेवी मिश्र ‘चकोरी’ की चुनिदा कविताओं पर आलोचनात्मक टिप्पणी करते हुए संपादक द्वय लिखते हैं- “अभी चकोरीजी का अल्प वय ही है, फिर भी उन्होंने अपनी सहृदयता से काव्य-रसिकों को आनंद प्रदान करने की चेष्टा की है।

आशा है, उनकी लेखनी, प्रौढ़ता प्राप्त होने पर, इस क्षेत्र में अपूर्व रस की वृष्टि करेगी। एक विनम्र प्रार्थना के साथ हम अपने इस निवेदन को समाप्त करते हैं और वह यह कि वे काव्याराधना में अपने हृदयगत उद्गारों की अभिव्यक्ति में किंचित संयत होने का उद्योग करें।”

प्रथम पृष्ठ

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book