नारी विमर्श >> हिन्दी की महिला साहित्यकार हिन्दी की महिला साहित्यकारगरिमा श्रीवास्तव
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"दरबारी प्रेम: एक रोमांटिक आदर्श, जो अधीनता के कई स्तर छुपाए हुए था।"
रेनेसां के सम्पूर्ण विचार में स्त्री के लिए घरेलू देवदूती की भूमिका तजवीज की गयी, एथेंस को इसके उदाहरण के तौर पर देखा जा सकता है जहां कला और बौद्धिकता के उत्कृष्ट माहौल में भी स्त्रियों के लिए घर की चारदीवारी को ही सबसे उपयुक्त स्थान माना जाता था। समूचे दरबारी साहित्य में स्त्रियों के प्रति रुढ़िग्रस्त मानसिकता के दर्शन होते हैं, जिसके पीछे सामाजिक-सांस्कृतिक कारणों को देखा जा सकता है। 11 वीं और 12 वीं शताब्दी में दरबारों में जो प्रेम सम्बन्धी काव्य दांते जैसे कवियों ने लिखा उससे एक नई तरह की साहित्यिक परंपरा की शुरुआत हुई, जिसने मध्यकालीन प्रेम-सम्बन्धी अवधारणाओं और वर्जनाओं की जगह प्रेम और नैतिकता का एक नया ही आदर्श सामने रखा। इससे पहले की दरबारी कविता सामंतशाही मूल्यों से संत्रस्त कविता थी, जिसमे किसी अधीन या किसान स्त्री की कामना करने वाले सामंत को प्रेरित करने वाले स्रोत थे, इस सन्दर्भ में कुलीन या सामंत के लिए कोई नैतिक बंधन नहीं था, दूसरी तरफ स्त्री के लिए प्रेम का अर्थ था कि वह प्रेमपात्री बनकर ही खुश रहे और प्रेमी की प्रत्येक इच्छा का सम्मान करे, उसे प्रसन्न रखे’-दरबारी प्रेम दरअसल प्रेमियों के बीच पारस्परिक स्वच्छन्दता की वकालत करता था। लेकिन दूसरे ढंग से देखें तो इस तरह का प्रेम आभिजात्य और कुलीन स्त्रियों को ही प्रेम करने करने का अधिकार देता था, जबकि अधीनस्थ और गरीब स्त्रियाँ प्रेम पात्र बनकर और ज्यादा अधीनस्थ बन जाती थीं। दरअसल दरबारी किस्म के प्रेम में अधीनता के कई आयाम थे-सबसे पहले तो स्त्री को घरेलू और पालतू बनाना, जिसके लिए भले ही स्त्री के आगे घुटने टेककर प्रेम की भिक्षा मांगनी पड़े, या विनम्रतापूर्वक प्रेम-निवेदन करना। दूसरे स्त्री को ऐसे भावात्मक नियंत्रण में रखना कि वह स्वतंत्रता की कल्पना भी न कर सके और प्रेम का यथोचित प्रतिदान देने के लिए निरंतर प्रस्तुत रहे। तीसरे उससे इस योग्य बनाना कि वह पति/प्रेमी के प्रति कर्तव्यशील, पवित्र और ईमानदार रहे।
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