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नारी विमर्श >> स्त्री दर्पण

स्त्री दर्पण

गरिमा श्रीवास्तव

प्रकाशक : नयी किताब प्रकाशित वर्ष : 2018
पृष्ठ :200
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 17270
आईएसबीएन :9789387145283

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"एक पत्रिका जो स्त्री-जागरण, संगठन और सामाजिक चेतना की प्रथम अग्रदूत बनी।"

प्रस्तुत संकलन में ‘स्त्री दर्पण’ के पांच प्रारंभिक अंक संकलित हैं-जनवरी 1910 से लेकर जून 1910 तक लेकिन बीच में मई 1910 का अंक उपलब्ध नहीं हो पाया और बहुत खोजने पर भी 1909 का कोई अंक देखने के लिए नहीं मिल सका। यह पत्रिका 1923 तक प्रयाग से निरंतर निकलती रही फिर उसके बाद अक्टूबर 1923 का अंक कानपुर से छपा। बाद में चलकर पत्रिका के संपादक भी कई बार बदले। 1910 ई. में छपे ये पांच अंक पत्रिका के स्त्री-रुझान और प्रतिश्रुति के ज्वलंत साक्ष्य हैं।

‘स्त्री दर्पण’ का प्रारंभ स्त्रियों के हित में एक बृहत्तर उद्देश्य को ध्यान में रखकर किया गया था। संपादिका रामेश्वरी देवी नेहरु (1886-1966) के परिचय में लिखा गया है : “इनका विवाह पंडित बृजलाल नेहरु से हुआ था जो पंडित मोतीलाल नेहरु के भतीजे हैं। रामेश्वरी देवी ने 1930 ई. में लन्दन जाकर भारतीय महिलाओं का प्रतिनिधित्व किया, 1931 ई. में लीग आफ नेशंस के बुलावे पर जिनेवा गयीं, 1934 ई. में महात्मा गांधी का प्रिय हरिजन उत्थान कार्य इन्हें सौंपा गया। 1939 ई. में ठक्कर बापा के साथ मध्य भारत की प्रमुख 14 रियासतों में हरिजन सेवा के निमित्त प्रयास किया। सामाजिक कार्यों में इनकी बड़ी रूचि थी, नारी-निकेतन, बाल-आश्रम, विधवा आश्रम इन्होंने खोले। 1950 ई. में दिल्ली में स्त्रियों के उद्धार के लिए ‘नारी निकेतन’ नाम की संस्था खोली। सामाजिक कार्यों के अतिरिक्त वह ‘स्त्री दर्पण’ जैसी हिंदी की सर्वप्रथम पत्रिका की जन्मदात्री हैं। उनकी ‘स्त्री दर्पण’ नामक पत्रिका में देश की बहिनों में संगठन, राष्ट्रीयता, आर्थिक और सामाजिक समस्याओं पर काफी प्रकाश डाला गया। यही पत्रिका उत्तर भारत में इलाहाबाद में अखिल भारतीय महिला परिषद् की नींव डालने में सहायक हुई जो आज समस्त भारत में व्याप्त है।”

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