नारी विमर्श >> स्त्री कवि संग्रह स्त्री कवि संग्रहगरिमा श्रीवास्तव
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"स्त्री सृजन की पहचान : पूर्वग्रहों से परे इतिहास की पुनर्व्याख्या"
अक्सर यह शिकायत इतिहास लेखकों को रहती है कि इनमें से कई स्त्रियाँ ऐसी हैं जिन्होंने या तो छद्म नामों से लिखा या फिर इनके लिए किसी और ने लिखा और प्रसिद्धि इन्हें मिली। यह भी कि यदि कोई स्त्री उत्कृष्ट रचना करने में सक्षम हो भी गयी तो उसके मूल्यांकन का मापदंड पुरुष ही रहे। इस बात को मैं शेख रंगरेजन के प्रसंग में स्पष्ट करना चाहूँगी। शेख रंगरेजन संवत 1712 में जन्मे आलम नामक ब्राह्मण कवि की पत्नी थी। आलम ने धर्म परिवर्तन करके उससे विवाह किया था, क्योंकि वे शेख की रचनात्मकता के कायल थे। उन दोनों का सम्मिलित काव्य-संग्रह ‘आलम केलि’ शीर्षक से प्रकाशित हुआ, जिसमें कवित्त और सवैया छन्द में 400 पद संकलित हैं। लाला भगवानदीन ने शेख रंगरेजन की कविताई की प्रशंसा करते हुए कहा है : “शेख यदि आलम से बढ़कर नहीं हैं तो कम भी नहीं। प्रेम की जिस धारा का प्रवाह आलम में है वही शेख में। दोनों की रचनाएँ ऐसी मिलती-जुलती हैं कि उनको एक-दूसरे से पृथक करना कठिन हो जाता है। नायिका-भेद और कलापूर्ण काव्य की दृष्टि से शेख को पुरुष कवियों की श्रेणी में रखा जा सकता है। उनकी सबसे बड़ी विशेषता उसकी शुद्ध भाषा, सरल पद्धति और सुव्यवस्थित भाव-व्यंजना है। शेख के पहले और बाद में भी बहुत दिनों तक शेख जैसी ब्रजभाषा किसी भी कवयित्री ने नहीं कही।” अब यह भी देख लीजिये कि ‘स्त्री-कवि कौमुदी’ की भूमिका लिखने वाले श्री रामशंकर शुक्ल ‘रसाल’ का उसी शेख रंगरेजन की रचनात्मकता के बारे में क्या कहना है, वे लिखते हैं : “हो सकता है कदाचित शेख के स्नेहासव पान से मदोन्मत्त भावुक प्रेमी ने ही प्रेम-प्रवाद में आकर शेख के नाम से रचना की हो, जो शेख के नाम से प्रसिद्ध हो गयी हो।” स्पष्ट है कि स्त्री के लिखे के प्रति पुरुष आलोचकों और इतिहास-लेखकों की दृष्टि पूर्वग्रह मुक्त कभी नहीं रही।
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