लोगों की राय

लेख-निबंध >> भारतीय होने का अर्थ

भारतीय होने का अर्थ

पवन कुमार वर्मा

प्रकाशक : प्रभात प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2005
पृष्ठ :216
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 1728
आईएसबीएन :81-7315-539-9

Like this Hindi book 7 पाठकों को प्रिय

181 पाठक हैं

भारतीयों की यथार्थ स्थिति और वैश्विक विकास में उनकी भागीदारी का परीक्षण...

Bhartiya Honey Ka Arth a hindi book by Pawan Kumar Verma - भारतीय होने का अर्थ - पवन कुमार वर्मा

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

भारतीय होने का अर्थ’ में लेखक ने अपनी सूक्ष्म और पैनी दृष्टि से भारतीयों की यथार्थ स्थिति और वैश्विक विकास में उनकी भागीदारी का परीक्षण करते हुए उनके संबंध रूढ़ और मिथ्या धारणाओं तथा आम मान्यताओं का पूर्ण रूप से खंडन किया है। भारतीयों और भरत की संस्कृति का सूक्ष्म विश्लेषण करते हुए लेखन ने उन विसंगतियों और विरोधाभासों पर एक सर्वथा नवीन और चकितकारी निष्कर्ष प्रस्तुत किया है, जो शक्ति, संपदा और आध्यात्मिकता जैसे विषयों पर भारतीय दृष्टिकोण का चित्रण करते हैं। उदाहरणस्वरूप किस प्रकार अधिकांश भारतीय गरीबों की दुर्दशा तथा जाति प्रथा के अनौचित्य के प्रति अपनी घातक उदासीनता को संसदीय लोकतंत्र की अपनी जोरदार हिमायत के अनुकूल बना रहे हैं ? किस प्रकार स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान महात्मा गांधी द्वारा अपनाए गए अहिंसा के सिद्धांत का समर्थन करने वाले लोग अधिक दहेज के लिए अपनी पत्नी-बहू को जिन्दा जला रहे हैं ? और क्यों भारतीयों का आध्यात्मिकता पारलौकिक उपलब्धि के क्षेत्र में इतनी प्रतिष्ठा प्राप्त हुई है, जबकि उनका दर्शन और उनकी परंपरा भौतिक सुख को जीवन के वास्तविक लक्ष्य से परे मानती है ?

इस पुस्तक में एक अरब से भी अधिक की जनसंख्या वाले भारत की आर्थिक तकनीकी और सैन्य शक्ति का भावी परिदृश्य भी प्रस्तुत किया गया है। यह भारतीयों के लिए स्वयं को जानने-समझने तथा विदेशियों के लिए भारतीयों की यथार्थ विशेषताओं की जानकारी प्राप्त करने के लिए समान रूप से उपयोगी पुस्तक है।

आमुख

हरिद्वार, जहाँ गंगा नदी हिमालय से उतरती है और समुद्र की ओर अपनी लंबी यात्रा में मैदानों में प्रवेश करती हैं। हिन्दुओं के लिए एक पवित्र शहर हैं। हजारों तीर्थयात्री प्रतिदिन यहाँ की यात्रा करते हैं। पूजा-प्रार्थना की धक्का-मुक्की के बीच, कुछ लोगों को सर्दियों में भी बर्फीली नदी के बीच नंगे पाँव खड़े देखा जा सकता है। उनके हाथों में एक पारदर्शी शीशा होता है और उससे तेजी से बहते पानी को देखते हुए दिन बिताते हैं। उनकी स्थिर आँखें एक एकाग्रता की बात कहती हैं, जो संभवतः नजदीक के हजारों श्रद्धालुओं से अधिक होती है परंतु उनका उद्देश्य भिन्न है : प्रार्थना नहीं, मोक्ष नहीं, आत्मा की मुक्ति नहीं। उनका ध्यान नदी के तल में मौजूद सिक्कों पर केन्द्रित होता है, जिसे वे खोजकर अपने पैरों से बड़ी सफाई से निकाल लेते हैं।

भारत चरित्र-चित्रण के लिए एक गूढ़ देश है। भारतीयों को परिभाषित करना आसान नहीं है। खासकर आज जब वे संक्रमण काल में हैं, इतिहास की परछाइयों से एक वैश्वीकृत होती दुनिया की चकाचौंध में उभरते हुए। यह पुस्तक अतीत के संदर्भ में और भविष्य की रूपरेखा में यह समझाने का एक प्रयास है कि हम वास्तव में कौन है। यह कार्य खतरों से भरा है। भारत इतना बड़ा और इतना विविध है कि इसके सभी स्तरों को आसानी से छूना संभव नहीं है। हर सामान्यीकरण का एक उल्लेखनीय अपवाद होता है। हर समानता के लिए एक उल्लेखनीय विभिन्नता है। इसलिए मैं पहले ही इस पुस्तक की किसी ऐसी बात के लिए क्षमा-याचना करता हूँ, जो कि किसी की भावनाओं को चोंट पहुँचाती हो या अपने बारे में उनकी अवधारणा के विपरीत प्रतीत होती हो। मेरा एकमात्र उद्देश्य यथासंभव एक सच्ची तश्वीर बनाना रहा है; परंतु मैं स्वीकार करता हूँ कि सच सार्वभौमिक नहीं है और उसके उल्लेखनीय अपवाद हो सकते हैं। मैं यह भी उल्लेख करना चाहता हूँ कि मैंने कई स्थानों पर ‘हिंदू’ तथा ‘भारत’ शब्द को अनन्य रूप से इस्तेमाल किया है।

यह किसी प्रकार की उग्र राष्ट्रवादिता से प्रेरित नहीं है, बल्कि ऐसा इसलिए है, क्योंकि बहुसंख्यक भारतीय हिंदू हैं। किसी कारण से ऐसे विशेषताएँ मौजूद हैं जो निर्णायक रूप से भारतीय हैं और वे सभी भारतीयों पर लागू होती हैं, चाहे उनकी धार्मिक आस्थाएँ जो कुछ भी हों।

भारत आज उड़ान की देहरी पर खड़ा प्रतीत होता है, परंतु इसके कारण वर्तमान ‘फील गुड’ तरंग की मौज से परे है। सहस्राब्दियों तक इतिहास की कठोर परीक्षा में लगे रहे लोगों के विश्लेषण में कोई भी तश्वीर पूरी तरह श्याम या श्वेत नहीं हो सकती है। हर चीज हमेशा न तो सही हो सकती है और न ही गलत हो सकती है। लोगों की आधारभूत ताकतों के आधार पर एक बैलेंस शीट बनाने और इस तर्क को परखने की चुनौती है कि स्पष्ट कमजोरियों के बावजूद ताकत मौजूद रहेगी। संस्कृति, इतिहास और समाज की संरचना इस गणना में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इसी प्रकार, लोगों का सहज लचीलापन तथा उनकी आकाक्षाएँ व महत्वाकांक्षाएँ भी इसमें एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। हमारे मामले में हमें अकुशल होते हुए भी अपना काम निकालने के अद्वितीय कौशल, कमजोरी को ताकत में बदलने की क्षमता तथा निश्चित रूप से भाग्य को ध्यान में रखना चाहिए।

इस पुस्तक पर कई वर्षों से अनुसंधान हो रहा था, परंतु मैंने इसे अधिकांशतः तब लिखा जब मैं एक राजनयिक के रूप में साइप्रस में था। उस खूबसूरत द्वीप में मुझे अपने हृदय के करीब विषय पर लिखने के लिए अनुकूल वातावरण तथा दूरी प्रदान की। मैं डेविडार, जो अब पेंगुइन कनाडा के साथ हैं, के प्रति अपना अत्यंत आभार प्रकट करना चाहता हूँ जिन्होंने सबसे पहले मुझे यह पुस्तक लिखने का सुझाव दिया। अब मेरा परिवार मेरी लेखन तल्लीनता के साथ गंभीरता से सामंजस्य कर रहा है। मेरी स्वर्गीया माँ भारतीय संस्कृति के अपने गहन ज्ञान के कारण एक उत्कृष्ट संदर्भ-बिंदु थीं। मेरा पुत्र वेदांत तथा मेरी पुत्रियाँ मानवी और बताशा, साथ ही उनके मित्र जिनमें से मैं ऋषभ पटेल का उल्लेख करने से स्वयं को नहीं रोक पा रहा हूँ, अकसर अनुसंधान सहयोगियों की तरह काम करते थे। मैं हमेशा की तरह, अपनी पत्नी रेणुका का उनके धैर्य तथा भावात्मक सहयोग और इस पुस्तक के कई पहलुओं पर उनके मतों के लिए आभारी हूँ।

पवन के.वर्मा

परिचय 1

बिंब बनाम वास्तविकता

इस पुस्तक का उद्देश्य एक नए तथा नाटकीय रूप से भिन्न जाँच-पड़ताल का प्रयास करना है कि भारतीय होने का क्या अर्थ है ? ऐसी जाँच आज विशेष रूप से प्रासंगिक है, न केवल भारत के लिए बल्कि वैश्विक रूप से भी। इक्कीसवीं सदी में, विश्व का हर छठा व्यक्ति भारतीय है। भारत विश्व में दूसरा सबसे बड़ा उपभोक्ता बाजार के रूप में उभरने के लिए तैयार है, जिसमें खरीददार मध्यम वर्ग की संख्या लगभग 50 करोड़ है। क्रयशक्ति के संदर्भ में भारतीय अर्थ व्यवस्था पहले ही चौथी सबसे बड़ी अर्थ व्यवस्था है। सकल राष्ट्रीय उत्पाद में यह पहले दस देशों में है। विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र एक परमाणु शक्ति है, जो संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्यों के साथ बराबरी के अपने अधिकार के प्रति आश्वस्त है।
इसके अलावा, उपमहाद्वीप में महत्त्वपूर्ण परिवर्तन हो रहे हैं। फ्रांस की कुल जनसंख्या से अधिक डिग्रीधारियों के साथ भारत सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में अपनी नई पहचान बना रहा है। कुछ वर्षो में साफ्टवेयर निर्यात 50 अरब अमेरिकी डॉलर हो जाने का अनुमान है। चीन के बाद विदेशों में भारतीय समुदाय द्वारा दूसरा सबसे बड़ा समुदाय है। अमेरिका में भारतीय सबसे समृद्ध जातीय समुदाय के रूप में उभरे हैं और ब्रिटेन एवं खाड़ी समेत अन्य देशों में एक प्रगतिशील तथा अत्यंत प्रभावी उपस्थिति रखते हैं। भले ही दुनिया चाहे या नहीं, नई सहस्राब्दी में भारतीयों से कई और तरीकों से संपर्क करना कठिन होगा। इसलिए, पहले से कहीं अधिक स्पष्टता और ईमानदारी से यह समझना महत्त्वपूर्ण है कि एक भारतीय होने का क्या अर्थ है।

आतीत में ऐसी पड़तालों में दो कारक अत्यंत बाधक रहे हैं। पहला है, वह रूढ़ दृष्टि, जिससे विदेशी भारत को देखते हैं। दूसरा है आत्मछवि, जो भारतीय अपने बारे में प्रस्तुत करना चाहते हैं। भारत में आकर विदेशी सामान्यतः हक्के-बक्के रह जाते हैं। श्रव्य तथा दृश्य अनुभव की व्यापक रेंज उन्हें अभिभूत कर देती है। उनकी प्रतिक्रिया के कई उदाहरण दिए जा सकते हैं। परन्तु रिपोर्टों की कुछ उन्मादी प्रकृति को दर्शाने के लिए एक उदाहरण पर्याप्त होगा। उन्नीसवीं शताब्दी के अंत में भारत की अपनी यात्रा के बाद मार्क ट्वेन ने यह लिखा था—‘यह वास्तव में भारत है ! सपनों और रोमांस की भूमि, प्रचुर समृद्धि तथा प्रचुर गरीबी की भूमि—जिन्नों, दैत्यों और अलादीन के चिरागों की, बाघों तथा हाथियों की भूमि—हजार राष्ट्रों तथा सैकड़ों भाषाओं, हजारों धर्मों एवं 20 लाख देवताओं का देश, मानवी दौड़ का पालना, मानवी उक्ति का जन्म स्थान, इतिहास की माता आख्यान की दादी, परंपरा की परदादी...।’

एडवर्ड सेड के शब्दों में औपनिवेशिक काल के दौरान अवधारणाएँ पश्चिम की ‘प्राच्यविद्या’ के कारण विकृत हुई। पूर्वी देश अपरिचित ‘अन्य’ थे, उसके लोग परिचित ‘हम’ की बजाए अजनबी ‘वे’ थे। अधिकाँश अंग्रेजों के लिए भारत उन्माद या निंदा को उत्तेजित करता था। देश को अपरिवर्तनीय रूप से विखंडित या आध्यात्मिक रूप से इंद्रियातीत, अत्यंत अशासनीय या एक पक्षीय रूप से आत्मनिर्भर, न सुधारे जाने योग्य भ्रष्ट या भौतिकवादी , अत्यंत गूढ़ या आश्चर्यजनक रूप से प्राचीन तथा उद्घाटक के रूप में देखा गया। भारतीय एक साथ अस्वाभाविक रूप से आलसी या आश्चर्यजनक रूप से मेहनती, घोर अंधविश्वासी या उल्लेखनीय रूप से विकसित, निंदनीय, दासोचित या हमेशा विद्रोही, विस्मयकारी प्रतिभा-संपन्न या पारदर्शी नकलची, अत्यंत सुसंस्कृत या निराशाजनक रूप से गरीब-सामान्यतः इस प्रकार कई रूप वाले थे।

ब्रिटिश विद्वता विवरणों में अच्छी थी, जैसे जीव-जन्तुओं तथा पेड़-पौधों का विवरण, और गजेटियर का लेखन। परंतु विवरणों को अकसर सरल रूप में कम शोधित सामान्यताओं तक खींच दिया जाता था। जर्मन संस्कृविज्ञ एफ.मैक्समूलर, जिन्होंने जीवनपर्यन्त हिंदू दर्शन का अध्ययन किया, ने अत्यंत आग्रहपूर्वक तर्क दिया कि भारतीय काफी ईमानदार भी थे।
महात्मा गांधी द्वारा स्वतंत्रता संघर्ष के नेतृत्व, सांप्रदायिक सद्भाव के प्रति वैयक्तिक प्रतिबद्धता और अंग्रेजों को हराने की रणनीति के रूप में अहिंसा के उनके चयन ने सहिष्णु तथा अहिंसक लोगों के रूप में भारतीयों की एक नई छवि बनाई। भारत के प्रधानमंत्री के रूप में जवाहरलाल नेहरू की लंबी पारी ने लाखों लोकतांत्रिक भारतीयों द्वारा परंपरा से आधुनिकता में परिवर्तन के लिए संघर्ष की एक और छवि दिखाई। फिर भी, भूमि की स्पष्ट विविधता तथा उसकी सांस्कृतिक परंपरा की जटिलता ने सही या गहन समझ को धुँधला करना जारी रखा। प्रसिद्ध अर्थशास्त्री जॉन केनेथ गैलब्रेथ, जो भारत में रहते थे और नेहरू के मित्र थे, ने एक बार भारत को एक ‘क्रियाशील अराजकता’ कहा। दशकों बाद उन्होंने स्वीकार किया कि ऐसा उन्होंने केवल ‘ध्यान आकर्षित करने के लिए’ कहा था।

सन् 1991 के आर्थिक सुधारों और 1998 में एक परमाणु विस्फोट ने, विशेषकर पश्चिम में, भू-राजनीतिक, रणनीतिज्ञों तथा आर्थिक विश्लेषकों के राडार-स्क्रीनों पर भारतीय बिंदु को कुछ और बड़ा कर दिया। ‘इकोनॉमिस्ट’ एक जागे हुए हाथी की छवि प्रस्तुत की, जो आखिरकार धीरे-धीरे चलकर बाजार के पास आ रहा है। स्टीफन पी. कोहेन ने एक सुसंबद्ध पुस्तक लिखी, जिनमें उन्होंने मनन किया कि भारत एक दिन एक बड़ी शक्ति के रूप में उभरेगा या हमेशा ‘यात्रा में’ रहेगा। परंतु ऐसे अस्तित्वपरक विचार कम ‘विद्वान’ पर्यटकों के दिमाग में शायद ही महत्वपूर्ण होते हैं, जो उन संख्याओं में नहीं आते जिनमें भारतीय पर्यटन विभाग उन्हें चाहता है। जो आते हैं, वे अधिकांशतः एक प्राचीन संस्कृति को खोजने आते हैं, तथा आस-पास लापरवाही से बिखरे आश्चर्यजनक स्मारकों में उसे पाते हैं।

उन्होंने आध्यात्मिक भारत के बारे में पढ़ा है और उसे वे दक्षिण भारत के मंदिरों के शिखरों तथा वाराणसी में गंगा में डुबकी लगाते श्रद्धालुओं में देखते हैं। भोजन तथा परिधानों की विविधता उनके कैमरों को पसंद आती है। वे सस्ती कीमतों पर हस्तशिल्प खरीदते हैं। वे अंग्रेजी बोलने वाले भारतीयों तथा महानगरों की बहुमंजिली इमारतों में आधुनिक भारत को पाते हैं। उन्हें धोखा देने वाला दलाल अविकसित अर्थव्यवस्था में भ्रष्टाचार का प्रमाण हैं। गंदगी तथा गरीबी मिचली लानेवाली है, परंतु इसका श्रेय आध्यात्मिक भारत की कालातीत पारलौकिकता को दिया जाता है। कुछ समय यह तर्क करने में बिताया जाता है कि किस प्रकार अहिंसक माना जाने वाला देश एक परमाणु विस्फोट कर सकता है। परंतु जल्द ही यह यात्रा समाप्त हो जाती है। पर्यटक इस बात पर विस्मित होते हुए अपने देश लौटते हैं किस प्रकार एक विशाल देश को साथ बाँधे रखा गया है और किस प्रकार इसके गरीब तथा अधनंगे लोगों ने इतने लंबे समय तक लोकतंत्र बनाए रखने के लिए मत दिया है।


प्रथम पृष्ठ

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book

A PHP Error was encountered

Severity: Notice

Message: Undefined index: mxx

Filename: partials/footer.php

Line Number: 7

hellothai