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असंभव समुद्र

राधेश्याम तिवारी

प्रकाशक : साहित्य एकेडमी प्रकाशित वर्ष : 2025
पृष्ठ :368
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 17336
आईएसबीएन :9789361832734

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असंभव समुद्र – हिंदी कविता में सागर का व्यापक और गहन स्वरूप

असंभव समुद्र हिंदी के 104 कवियों की 208 हिंदी कविताओं का संचयन है। साहित्य और समुद्र का संबंध भी उतना ही गहरा है, जितना गहरा स्वयं समुद्र है। समुद्र इसलिए भी समुद्र है कि इसकी व्यापकता केवल अपने तटों तक ही सीमित नहीं है। सारी नदियों का पानी समुद्र में जमा होता है, मगर नदियों के उस संचालित जल को समुद्र अपने पास में रखकर बादलों में वितरित करता रहता है। साहित्य का लक्ष्य भी मनुष्य की भलाई है। मनुष्य की भलाई के इस स्वरूप में वैयक्तिक एवं सामाजिक दोनों तत्वों के सामंजस्य का भाव निहित है। इस प्रकार साहित्य स्वांतः सुखाय और बहुजन हिताय की पूर्ति करता है। समुद्र इसलिए भी समुद्र है कि उसके पास नदियों को जाते हुए सभी देखते हैं; मगर यह कोई नहीं देखता कि वह बादलों को कब और कैसे पानी देता है। दिखाकर देना समुद्र का स्वभाव नहीं है। बादल भी समुद्र के पदचिह्नों पर चलते हुए पानी अपने पास नहीं रखता और धरती की प्यास बुझाने को कर्मरत रहता है।

समुद्र के इन्हीं मानवीय गुणों ने साहित्य, कला, फिल्म, थियेटर, शास्त्रीय संगीत सहित कला के तमाम रूपों को प्रभावित किया है। जहाँ तक हिंदी कविता की बात है, यहाँ भी समुद्र अनेक रूपों में विद्यमान है। समुद्र ने हिंदी कवियों की भी दुनिया की दूसरी भाषाओं के कवियों की तरह ही गहरे प्रभावित किया है। इसी का प्रतिफल है कि हिंदी कविता में भी समुद्र कभी सीधे तो कभी प्रतीकों के रूप में झलक आता है और लगभग सभी बड़े कवियों ने समुद्र के केंद्र में रखकर कविताएँ लिखी हैं। अभी तक समुद्र केंद्रित हिंदी कविताओं का कोई मुकम्मल संचयन उपलब्ध नहीं था। आशा है यह संचयन इस कमी को दूर करेगा।

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