जीवन कथाएँ >> संतविभूति प्रमुखस्वामी महाराज संतविभूति प्रमुखस्वामी महाराजस्वामी भद्रेशदास
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जहाँ सरलता मिलती है दिव्यता से, और प्रेम गले लगाता है समस्त जगत को।
संतविभूति प्रमुखस्वामी महाराज पुस्तक हमारे युग की एक महान संत-प्रतिभा का सर्वतोभद्र शब्दचित्र है। प्रमुखस्वामीजी के व्यक्तित्व को दर्शाती यह पुस्तक, वास्तव में भारत की भव्य और दिव्य संस्कृति का परिचय करवाती है। प्रमुखस्वामीजी द्वारा विश्वहित में किए गए कार्यों को यहाँ सात प्रकरणों में सुचारु रूप से निदर्शित किया गया है। यह पुस्तक संत और समाज के प्रेमपूर्ण संबंध को उजागर करती है। इस पुस्तक में वैयक्तिक, कौटुंबिक, सामाजिक एवं वैश्विक समस्याओं का समाधान मिलता है। पुस्तक में वर्णित प्रमुखस्वामीजी के चरित्र से करुणा, प्रेम, मैत्री, आदर, तप, संयम, सेवा, परोपकार और भगवान में श्रद्धा जैसे जीवन मूल्यों की प्रेरणा प्राप्त होती है। वैदिक काल से ही ‘गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुर्गुरुर्देवो महेश्वरः। गुरुः साक्षात् परं ब्रह्म तस्मै श्रीगुरवे नमः॥’ का नाद भारतवासी के मन-मस्तिष्क में गूंज रहा है। इस पुस्तक में लिखित एक एक घटना इस नाद के अर्थों को जीवंत कर देती है। प्रमुखस्वामीजी के अति सरल, अति सहज, परम हितकारी, दंभ-कपटशून्य, निर्दोष और परमात्मभक्तिपूर्ण आध्यात्मिक जीवनरस को यहाँ सर्वजनसुलभ रीति से परोसा गया है। यह पुस्तक समाज के समक्ष प्रमुखस्वामी महाराज के रूप में एक अनुकरणीय संतचरित को प्रस्तुत करती है, शास्त्रों में वर्णित ब्रह्म स्थिति का प्रत्यक्ष उदाहरण पेश करती है। अवश्य ही मानव समाज को विश्व शांति, विश्व संवादिता एवं ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ जैसी उदात्त जीवन भावनाओं को आत्मसात् करने में यहाँ दिग्दर्शन मिलेगा। इस पुस्तक में जड चेतनात्मक संपूर्ण सृष्टि के प्रति प्रेम और आदर की दृष्टि प्रदान करने का सामर्थ्य संनिहित है।
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