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सेतुबंध

राजा भाई नेने व नरेंद्र मोदी

प्रकाशक : प्रभात प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2001
पृष्ठ :143
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 1746
आईएसबीएन :81-7315-360-4

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सेतुबंध

Setubandh

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

।।हृदयगत।।


सेतुबंध !
सदियों पहले
एक सेतु बना था।
रामायण काल में
लड़ाई थी
राम-रावण के बीच
देव एवं आसुरी
शक्तियों के बीच।

वास्तुकार नल-नील की प्रतिभा
वानर सेना की उत्कृष्ट भक्ति
और....
गिलहरी...से...सुग्रीवराज
हर किसीकी सामूहिक
भक्ति एवं
कर्म शक्ति !

ज्ञान, भक्ति, कर्म की
त्रिवेणी ने
निर्माण किया
वह सेतुबंध !
आसुरी शक्ति
पराजित हुई
दैवी शक्ति विजयी हुई !

वक्त बदलता है
रूप बदलते हैं
लेकिन...
दानव और मानव के बीच
संघर्ष चलता ही रहता है
यह संघर्ष
अंतर्मन से लेकर
चराचर सृष्टि तक
व्याप्त है

तभी तो...
निर्माण करने पड़ते हैं
‘सेतु’
युग के अनुकूल

सेतुबंध का निर्माण
देश भर में
आज भी
चलता ही रहता है।
गुजरात में भी ऐसे सेतुबंध के
प्रमुख वास्तुकार थे
श्री वकील साहब

उनकी कार्य शक्ति
कर्तत्व शक्ति
एवं
अपार भक्ति की
धुरा के इर्द-गिर्द
निर्मित
आकृति का
यह आलेख
यानी...
सेतुबन्ध !

जिन्होंने...
सहस्र हृदयों को
स्नेह के बंधन से
बाँध दिया
स्वयं
सेतु बनकर
चिरंतन सांस्कृतिक सरिता की
अनुभूति कराने हेतु
रचा था..
व्यवहार जगत् का...
सेतु..

भव्य भूतकाल की
धरोहर पर
उज्ज्वल भविष्य के
निर्माण हेतु
वर्तमान में रचा था
एक निष्ठ
पुरुषार्थ का
सेतु...!

यह वकील साहब का
चरित्र ग्रंथ नहीं है.....
और न ही है यह
उनका गौरव गान...
यह तो है
उनकी
सुदीर्घ तपस्या का
पुरुषार्थ का
शब्द देह...!

गुजरात के संघ कार्य में
संघ परिवार में
वकील साहब का स्थान
अनोखा था।
गुजरात के सार्वजनिक जीवन में
उनका योगददान भी
अप्रतिम था...

ऐसी जीवन यात्रा को
स्नेह सरिता को
कर्मधारा को
शब्द-देह देना
सरल काम नहीं है

इसके बावजूद भी
वकील साहब के प्रति
समर्पित
अंतःकरण के उत्कृष्ट भाव
शब्दरूप अभिवयक्ति के लिए
प्रेरणा देते रहते हैं
उसी भाव विश्व की
कोश से तो
सृजन हुआ
‘सेतुबंध’

‘सेतुबंध’ के
लिए
अनेकों ने
साहित्य भेजा है।
भेजे हैं संस्मरण
पत्र एवं तस्वीरें भी
साथ-साथ
सद् इच्छा, सद् भाव
और सुझाव भी
‘सेतुबंध’ की
रचना में
उसका बहुत उपयोग हुआ
हम सबके आभारी हैं
हाँ...
फिर भी मन में
एक कसक
है ही
आई हुई सारी जानकारी का हम
उपयोग कर नहीं पाए
उसके पीछे भी
कुछ कारण हैं
कुछ मर्यादाएँ भी...
‘लक्ष्मण-रेखा थी’
‘सेतुबंध’ के पीछे की
भूमिका की
मर्यादा थी...
उसकी आकृतिबंध की
और उससे भी
अधिक मर्यादा थी
हमारी प्रतिभा शक्ति की।
बावजूद....
हमें लगता है
इस कृति के संबंध में
जो धारणाएँ होंगी
जो अपेक्षाएँ होंगी
उसकी कुछ मात्रा में
पूर्ति होने का
अहसास अवश्य होगा।
नम्र अपेक्षा यही है कि
समाज जीवन के
विविध क्षेत्रों में
जो लोग समर्पण भाव से
युगानुरूप
‘सेतुबंध’ का
निर्माण कर रहे हैं
उन सबके लिए
यह शब्द रूप
‘सेतुबंध’
कुछ-न-कुछ
काम आए।

-राजाभाई नेने, नरेंद्र मोदी


प्रस्तावना



आज मनुष्य मनुष्य से दूर होता जा रहा है—धर्म के नाम पर, विचारों के नाम पर, दल के नाम पर अथवा वैयक्तिक राग-द्वेष और मत-मतांतर के कारण—और ऐसे छिन्न-भिन्न हुए सामाजिक जीवन के लिए स्व. वकील साहब (लक्ष्मण माधव इनामदार) का जीवन सेतुबंध की प्रेरणा देनेवाला है। मनुष्य को समझने और दूसरों को प्रेम से आत्मसात करने की अद्भुत कला उनके पास थी। इसीलिए तो परिवारजनों से दूर हुए, सैकड़ों कार्यकर्ताओं के बीच सेतु बने थे। उन्होंने ऐसे सैकड़ों परिवारों के संघ की प्रवृत्ति में रसपूर्ण जोड़ा था।

वकील साहब कठोर साधना के मूर्तिमंत आविष्कार थे। वे एक तपस्वी भी थे। मंगलाकीर ध्येय के लिए मुसीबतों एवं आपदाओं का उन्होंने दृढ़ता से स्वागत किया और इसीलिए उनके जीवन में विशिष्ट सुगंध थी। वे संघ के विपत्ति काल में भी दृढ़ रहे और उस पर से गुजरनेवाली तूफानी हवाओं में संघ की मशालचक्र प्रज्वलित करने का भगीरथी कार्य करते रहे। हजारों के मार्गदर्शक और प्रेरक बने। उनका दृढ़ मनोबल अपूर्व धैर्य और हिमालय की तरह अडिग निष्ठा हजारों कार्यकर्ताओं के लिए मार्गदर्शक थी। वे केवल कार्यकर्ता निर्माता ही नहीं, एक कुशल संगठनकर्ता भी थे। उनके नेतृत्व में निर्भीकता और व्यवहार में सयानेपन का समन्वय था, इसीलिए वकील साहब छोटे-बड़े साहब को अपने लगते थे।


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