चिन्मय मिशन साहित्य >> उपदेश सार उपदेश सारस्वामी तेजोमयानन्द
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इसमें बौद्धिक वादविवादों में उलझे वेदान्त को सरल रूप में प्रस्तुत करने का यथा संभव प्रयत्न किया गया है।
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
प्राक्कथन
वेदान्त एक गहन गम्भीर विषय है जिसका सरलता से निरुपण करना एक कठिन कार्य
है; परन्तु भगवान रमण महर्षि ने इसी गंभीर विषय को अत्यन्त सरल,
सुन्दर एव आकर्षण रूप में प्रस्तुत किया है अपने
‘उपदेश-सार’
नामक ग्रन्थ में। मध्य प्रदेश तथा उत्तर प्रदेश के कुछ स्थानों पर
चिन्मय-मिशन की शाखाओं द्वारा आयोजित ज्ञानयज्ञों (वेदान्त प्रवचन माला)
में मुझे इस ग्रन्थ पर प्रवचन करने का अवसर मिला, जिसमें बिना किसी
बौद्धिक वादविवादों में उलझे वेदान्त को सरल-रूप में प्रस्तुत करने का यथा
संभव प्रयत्न किया गया था। सभी स्थानों पर इस ग्रन्थ को लोकप्रियता मिली
और इस पर एक टीका लिखने के लिए मुझे अनेक लोगों ने आग्रह किया, परन्तु
लेखन कार्य के अभ्यास के अभाव में वह कार्य मैं शीघ्र नहीं कर सका। मुझसे
यह टीका लिखवाने का श्रेय मैं मिशन की लखनऊ शाखा के सदस्यों को
देता
हूँ तथा इसे प्रकाशित करने का श्रेय है कानपुर शाखा को। यह टीका विशेष रूप
से उन व्यक्तियों के लिए लिखी गयी है। जिन्होंने इस पर हुए प्रवचन सुने
थे। आशा है अन्य व्यक्तियों को भी इससे कुछ लाभ मिलेगा।
स्वामी तेजोमयानंद
भगवान रमण महर्षि
जीवन परिचय
भगवान रमण महर्षि का जन्म 30 दिसम्बर 1879 को रामनद जिले के तिरुचुजी नामक
गाँव में हुआ था। उनके पिता श्री सुन्दरम् अय्यर वकील थे। महर्षि का बचपन
का नाम श्री वेंकट रमन था। इनके सम्बन्धियों और साथियों का कहना था कि
बाल्यावस्था में ही इनको अनवस्थित अवस्था के दौर-से आया करते थे, किन्तु
वास्तव में वह अपने व्यक्तित्व का अन्तरावलोकन किया करते थे।
उनमें
बहुत गहरी और सहज भक्ति थी जो
‘‘अरुणाचल’’-
तिरुवन्नैमलै पर केन्द्रित थी।
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