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आशापूर्णा देवी

प्रकाशक : भारतीय ज्ञानपीठ प्रकाशित वर्ष : 2007
पृष्ठ :267
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 18
आईएसबीएन :8126313927

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ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित कहानी संग्रह


......बस औँखें तरेरकर देखने से ही काम हौ जाएगा। केशव राय की गिद्ध-दृष्टि को देखते ही मानिक की सुध-बुध वैसे ही गुम हो जाती है। यह सबव जानी-सुनी-देखी बात है।

अलाव की तरह सुलगती आँखें फाड़कर केशव और भी आगे बढ़ते आये......... और मानिक भी एक-एक कदम पीछे हटता गया...... डरे से.........।

दिन भर की बारिश की वजह से कीचड़ भरे पोखर के किनारे की गीली माटी भहरकर गिर पड़ी... और पलक झपकते केशव राय ने लड़के को एक झटके के साथ अपनी तरफ खींच लिया और उसके गाल पर एक चपत जमाते हुए उसे जोर से झिड़का, ''तू किस चूल्हे में कूद रहा था हरामजादे...मरना है क्या?''

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