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स्वामी विवेकानन्द की जीवनी सुंदर रंगभरे चित्रों सहित
भारतीय संस्कृति ऐसी जीवंत है कि इतिहास के अगणित थपेड़े भी उसे मिटा नहीं सके। उसकी जड़ें भारत के सर्वव्यापी आध्यात्मिक चिंतन में हैं, जो मनुष्य को जाति, विश्वास और राष्ट्रीयता जैसी बाहरी चीजों से नहीं तोलता है।
भारत का इतिहास 5000 वर्षों से भी पुराना है। इस अवधि में कभी-कभी उसके इन ऊँचे आदर्शों का ह्रास हुआ है। तथापि उसने बार-बार ऐसे मार्ग-दर्शक पैदा किये जिन्होंने देश को फिर से नयी शक्ति दी। श्रीकृष्ण, बुद्ध, शंकराचार्य तथा और भी अनेक व्यक्ति इन्हीं विभूतियों की गिनती में आते हैं। आधुनिक युग में हम फिर राष्ट्रीय ह्रास और पुनरूज्जीवन की चुनौती का सामना कर रहे हैं। 19वीं शताब्दी के प्रारंम्भिक भाग में आधुनिकता की चुनौती का हमने किसी प्रकार थोड़ा-बहुत सामना किया किंतु फिर भी रामकुष्ण और स्वामी विवेकानंद ऐसे दो मार्ग-दर्शक सामने आये जिन्होंने देश को वापस उसके आध्यात्मिक सोपान पर पहुंचाया।
इस रचना में विवेकानंद (1863-1902) की मनमोहक जीवनी प्रस्तुत है। उन्होंने राष्ट्र को उसकी सैकड़ों वर्षों की नींद से उठाकर उसमें अपने पौरुष को फिर से जगाने तथा पुननिर्माण करने का विश्वास एवं संकल्प पैदा किया।
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