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दौपदी का जीवन चरित्र - रंगभरे चित्रों के रूप में
दौपदी पूर्ण युवती के रूप में अग्नि से प्रकट हुई थी किन्तु हिन्दू पौराणिक गाथाओं की शायद ही कोई चरित्र-नायिका उसके समान व्यवहारकुशल हुई होगी।
धनी-मानी पंचाल-नरेश की पुत्री थी वह। उस राजसी जीवन ने उसके स्वभाव में दृढ़ता पैदा की। अपने विवाहित जीवन में उसने कई उतार-चढ़ाव देखे परन्तु अपनी दृढ़ता के बल पर उसने भारतीय धर्मगाथाओं में अनुपम स्थान पाया। उस युग में स्त्रियों की स्थिति समाज में बहुत अच्छी नहीं थी और द्रौपदी को भी उसी तरह का जीवन बिताना पड़ा। इसके उपरान्त भी उसके आचरण में उसका असाधारण व्यक्तित्व उभर कर सामने आया।
द्रौपदी से विवाह का अधिकार यद्यपि अर्जुन ने प्राप्त किया था, उसे पाँचों पाण्डवों की पत्नी बनना पड़ा। ऐसे विवाहित जीवन को भी उसने ऐसा सुखमय बनाया कि इस विषय में सत्यभामा भी उसके पास सलाह लेने आयी थी।
जब हस्तिनापुर में युधिष्ठिर उसे जुए में हार गये तो उसने सभा में ऐसे कानूनी तर्क प्रस्तुत किये कि बड़े-बूढ़े बुद्धिमानों के मुंह बन्द हो गये।
पत्नी का कर्तव्य निभाते हुए वह अपने पतियों के साथ जंगलों में रही और वहीं गृहस्थी बसायी। इतनी बुद्धिमान थी वह कि सदाचार के विषय में उसने युधिष्ठिर के सामने प्रश्नों की झड़ी लगा दी थी।
जब अर्जुन ने सुभद्रा से विवाह किया तो द्रौपदी को ईर्ष्या हुई तथापि उसने कभी अपनी भावना को प्रकट नहीं होने दिया।
दौपदी पूर्ण नारी थी - जटिल, फिर भी स्त्रियोचित गुणों से विभूषित।
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