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भगवान् राम के पिता दशरथ की कहानी
अमर चित्रकथा 'दशरथ' का कथानक मुख्यतया वाल्मीकि-रचित महाकाव्य 'रामायण' से लिया गया है।
बहुत कठिन तपस्या करके दुष्ट राक्षस रावण ने ब्रह्मा से यह वरदान प्राप्त कर लिया था कि स्वर्ग का कोई भी प्राणी वह भले ही यक्ष हो या गंधर्य या देव - उसे मार नहीं सकेगा। इस वरदान के जोर पर उसने देवताओं की राजधानी अमरावती पर आक्रमण कर दिया। वहाँ के निवासियों को उसने बड़ी मुसीबत में डाल दिया। परेशान होकर वे सब भगवान विष्णु की शरण में गये।
उन्हीं दिनों पृथ्वी पर एक धर्मप्रिय और यशस्वी राजा दशरथ पुत्र-प्राप्ति के लिए यज्ञ कर रहे थे।
देवताओं की सहायता के लिए विष्णु ने पृथ्वी पर अवतार लेकर रावण का वध करने का निश्चय किया - क्योंकि ब्रह्मा का वरदान मानव के हाथों रावण की रक्षा नहीं कर सकता था। इसलिए उन्होंने दशरथ की तीनों रानियों के चार पुत्रों के रूप में जन्म लेने का निर्णय किया।
दशरथ अपने बेटों को बड़े होते देखकर खुश होते थे। वे बड़े बेटे राम से विशेष प्रसन्न थे। उन्होंने कभी स्वप्न में भी नहीं सोचा था कि लड़कपन में अनजाने में किये अपराध की सज़ा उन्हें प्राण देकर भुगतनी होगी। वे यह भी कभी नहीं सोच पाये थे कि उनकी चहेती रानी कैकेयी ही सारी घटनाओं की सूत्रधार बनेगी।
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