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लंकापति रावण की कथा चित्रों में
वाल्मीकि-कृत रामायण भारत का सबसे प्राचीन महाकाव्य मानी जाती है। राम की इस कथा का कोई ऐतिहासिक आधार नहीं है। फिर भी यह काव्य हिन्दुओं के जीवन का अविभाज्य अंग बन गया है। अनाचार के प्रतीक - रावण, पर सदाचार के प्रतीक - राम की विजय का पर्व दशहरे के रूप में आज तक सारे भारत में मनाया जाता है।
राम की कथा से प्रेरणा पा कर अनेक लेखकों ने पद्य तथा गद्य में अनेक रचनाएँ प्रस्तुत की हैं। वाल्मीकि की मूल रामायण संस्कृत में है। इसके अतिरिक्त संस्कृत में ही नहीं, हिन्दी, बँगला, तमिल व अन्य भारतीय भाषाओं में भी इस कथा के विभिन्न संस्करण उपलब्ध हैं। विभिन्न लेखकों के हाथों इस सीधी-सादी शौर्य तथा साहस की कथा में इतने परिवर्तन हो गये कि कम से कम हजारों वर्षों से राम को अवतार के रूप में पूजा जा रहा है।
राक्षस नरेश सुमाली अपनी पुत्री कैकसी के लिए वर खोजने पाताल लोक से पृथ्वी पर आया। विश्रवा के धीर-वीर पुत्र, कुबेर उसे इतने पसन्द आये कि उसने सोचा कि कैकसी का विवाह विश्रवा से हो जाये और उसके गर्भ से कुबेर जैसे पुत्रों का जन्म हो। यह विवाह तो हो गया परन्तु उनके राक्षस सन्तानें हुई। उनमें सबसे बड़ा था रावण। अपनी माँ के उकसाने पर उसने लंका पर अपना अधिकार जताया। फिर उसने अनाचार का जो मार्ग अपनाया तो उसका अन्त लंका पर राम की विजय से ही हुआ।
प्रस्तुत कथा वाल्मीकि की रामायण पर आधारित है।
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