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अमर चित्र कथा हिन्दी >> चैतन्य महाप्रभू

चैतन्य महाप्रभू

अनन्त पई

प्रकाशक : इंडिया बुक हाउस प्रकाशित वर्ष : 2005
पृष्ठ :31
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 1909
आईएसबीएन :1234567890123

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चैतन्य महाप्रभू - भक्ति के प्रतीक चैतन्य पर जीवन चरित्र चित्रकथा के रूप में

विश्वम्भर, जो बाद में चैतन्य महाप्रभु के नाम से विख्यात हुए, जब पैदा हुए थे तो भारत के अधिकांश दक्षिणपूर्वी भाग पर मुसलमानों का शासन था। चैतन्य महाप्रभु ने परमात्मा तक पहुँचने का सरल मार्ग दिखाया। उनके मत को बाद में गौडीय वैष्णववाद कहा जाने लगा। चैतन्य ने न केवल हिन्दुओं की मुसलमान बनने की प्रवृत्ति को रोका, बल्कि हिन्दू धर्म को एक नयी जीवन शक्ति भी प्रदान की। भगवान् कृष्ण ने गीता में परमात्मा तक पहुँचने के विभिन्न मार्गों का वर्णन किया है। इनमें से एक आसान मार्ग है: 'सर्व धर्मान् परित्यज्य मामेकं शरण व्रज' (सब धर्मों को छोड़कर मेरी शरण में आओ)। इस प्रकार वैष्णवों का प्रपत्तिवाद अर्थात् ईश्वर के प्रति सपूर्ण समर्पण-कृष्ण या राम (विष्णु के अवतार) तक पहुँचाता है। मध्ययुग में इस सम्पूर्ण समर्पण की अनेक विधियाँ सुझायी गयी थीं।

चैतन्य ने गोपीभाव पर जोर दिया-गोपीभाव, अर्थात् ब्रज की गोपियों द्वारा आराधना के लिए अपनायी गयी विधि। इन गोपियों ने कृष्ण से कभी कुछ नहीं चाहा, फिर भी वे कृष्ण के प्रेम में दीवानी थीं। चैतन्य ने यह भी कहा कि सब मनुष्य समान हैं। "जाति पाँति न पूछो कोई। हरि को भजे सो हरि का होई।" चैतन्य द्वारा बतायी गयी इस सरल राह को पूर्वी भारत ने तत्काल स्वीकार कर लिया। उनके उपदेश देश के अन्य हिस्सों में भी पहुंचे।

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