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वसन्तसेना
शूदक कृत 'मृच्छकटिकम्' की गणना संस्कृत के उत्कृष्ट नाटकों में की जाती है। हमारी कहानी इसी से रूपांतरित की गयी है। यह अपनी कथावस्तु और चरित्र-चित्रण की दृष्टि से भी अपूर्व है। यह एक ऐसे राजा की कहानी है, जो प्रजा के एक मुखिया द्वारा पदच्युत कर दिया जाता है। इसका महत्व इस बात से और बढ़ जाता है कि नाटककार स्वयं एक राजा था। संभवतः यह नाटक ईसा पूर्व पहली शताब्दी और ईसा बाद पहली शताब्दी के बीच लिखा गया था।
'मृच्छकटिकम्' का शाब्दिक अर्थ है-मिट्टी की गाड़ी, जो उस खिलौना गाड़ी को इंगित करता है, जिससे निर्धन बने चारुदत्त का पुत्र खेलता है। नाटक की नायिका एक धनाढ्य नर्तकी वसन्तसेना है, जो चारुदत्त से प्रेम करती है। नाटक में एक ऐसे समाज का चित्रण किया गया है, जो पर्याप्त रूप से इतना उन्नत है कि वह न केवल विलासिताप्रिय है, बल्कि भ्रष्ट भी है। लेकिन समाज में भद्र मनुष्यों की कमी भी नहीं है। इसीलिए भ्रष्टाचारी राजा को सिंहासन से च्युत कर दिया जाता है। राजनीतिक विषयवस्तु और धर्मनिरपेक्ष निरूपण नाटक को समसामयिक प्रासंगिकता प्रदान करते हैं। इसे अंग्रेज़ी और फ्रेंच में अनूदित किया जा चुका है और अमरीका में इसे सफलतापूर्वक अंग्रेजी में मंचित किया गया है।
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