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ज्ञानेश्वर
संत ज्ञानेश्वर महाराष्ट्र में भक्तिमार्ग के आदि प्रवर्तक माने जाते हैं बाद के भी भक्त संतों के प्रेरणा स्रोत वे ही थे।
उस समय संस्कृत भाषा पर पंडितों का एकाधिकार था। सभी धर्म ग्रंथ संस्कृत में लिखे और पढ़े जाते थे। परिणामतः जनसामान्य की धर्मशास्त्रों के बारे में जानकारी नहीं के बराबर थी। संत ज्ञानेश्वर ने पहली बार मातृभाषा मराठी में गीता की व्याख्या करके उसे जनसुलभ बनाया। उन्होंने ज्ञानेश्वरी में लिखा है- "इस मराठी नगरी में आध्यात्मिक सम्पदा भर जाय, ताकि आनंद का भंडार सुलभ हो जाय और श्रद्धालु जितना चाहे आनंद रस लूट सकें।"
इसी मंतव्य से उन्होंने रोजमर्रा की जिंदगी में से उदाहरण देकर जनसामान्य को गीता की गहनता सरलता से समझा दी। किसी विशेष मत या बाद को प्रचारित करना उनका ध्येय नहीं था। वे तो बस गीता के रस का स्वाद सबके साथ मिलकर पाना चाहते थे। उन्होंने लिखा-"मैं सारे जगत को दिव्य आनन्द से भर देना चाहता हूँ। वही उन्होंने किया। यही कारण है कि आज तक उनकी ज्ञानेश्वरी बड़े चाव से बार-बार पढ़ी जाती है।
ज्ञानेश्वरी के अतिरिक्त ज्ञानेश्वर ने अनुभवामृत और 'चंगदेव प्रशंसित' नामक ग्रंथ तथा एक हजार पद लिखे जो 'अभंग' नामक से प्रसिद्ध हैं।
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