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जादुई कुंज
जैन संतों की सामान्य जन के आध्यात्मिक विकास में गहरी रुचि थी। अतएव दुरूह जैन दर्शन को सामान्य बौद्धिक स्तर की जनता के लिए सुगम और बोधगम्य बनाने में उन्होंने कथाओं का माध्यम अपनाया।
संस्कृत और प्राकृत में ऐसी हजारों शिक्षाप्रद कथाएँ पायी जाती हैं।
अधिकांश कथाओं में यह शिक्षा निहित है कि अच्छे कर्मों से मनुष्य को सुख और समृद्धि और बुरे कर्मों से दुख भोगने पड़ते हैं। जैन दर्शन के अनुसार मनुष्य स्वयं अपने भाग्य का निर्माता है। जैसा बोयेगा वैसा काटेगा। जिसका वह पात्र नहीं है, वह उसे उपलब्ध कराने में कोई भी बाहरी शक्ति उसकी सहायता नहीं कर सकती और न ही जिसका वह अधिकारी है उसकी प्राप्ति से उसे वंचित रख सकती है।
फिर भी अन्य कथाओं की भॉति प्रस्तुत कथा में भी मनुष्य के भाग्य निर्माण में दैवी शक्ति का महत्वपूर्ण योग पाया जाता है। इसके विषय में केवल इतना ही कहा जा सकता है कि देवी शक्ति का सहारा भी तभी मिलता है जब मनुष्य के सत्कर्म उस योग्य होते हैं।
प्रस्तुत रचना जादुई कुंज जैन धर्मगन्थ 'वर्धमान देसना' से ली गयी है।
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