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लाजवाब बीरबल

अनन्त पई

प्रकाशक : इंडिया बुक हाउस प्रकाशित वर्ष : 2005
पृष्ठ :32
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 1965
आईएसबीएन :1234567890123

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लाजवाब बीरबल

बीरबल की विनोद-प्रियता और बुद्धिचातुर्य ने न केवल अकबर, बल्कि मुगल साम्राज्य की अधिकांश जनता का मन मोह लिया था। लोकप्रिय तो बीरबल इतने थे कि अकबर के बाद उन्हीं की गणना होती थी। वे उच्च कोटि के प्रशासक और तलवार के धनी थे। पर शायद जिस गुण के कारण वे अकबर को परम प्रिय थे- वह गुण था उनका उच्च कोटि का विनोदी होना।

बहुत कम लोगों को पता होगा कि बीरबल एक कुशल कवि भी थे। वे 'बम' उपनाम से लिखते थे। उनकी कविताओं का संग्रह आज भी भरतपुर-संग्रहालय में सुरक्षित है। वैसे तो बीरबल के नाम से प्रसिद्ध थे, परंतु उनका असली नाम महेशदास था। ऐसा विश्वास किया जाता है कि वे यमुना के तट पर बसे त्रिविक्रमपुर (अब तिकवांपुर के नाम से प्रसिद्ध) एक निर्धन ब्राह्मण परिवार में पैदा हुए थे। लेकिन अपनी प्रतिभा के बल पर उन्होंने अकबर के दरबार के नवरत्नों में स्थान प्राप्त किया था। उनकी इस अद्भुत सफलता के कारण अनेक दरबारी उनसे ईर्ष्या करते थे और उनके विरुद्ध षड्यंत्र रचते रहते थे। बीरबल सेनानायक के रूप में अफगानिस्तान की लड़ाई में मारे गये। कहा जाता है कि उनकी मृत्यु ईर्ष्यालु विरोधियों के षड्यंत्र का परिणाम थी।

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