कविता संग्रह >> आनन्द मंजरी आनन्द मंजरीत्रिलोक सिंह ठकुरेला
|
0 |
त्रिलोक सिंह ठकुरेला की मुकरियाँ
¤
जैसे चाहे वह तन छूता।
उसको रोके, किसका बूता।
करता रहता अपनी मर्जी।
क्या सखि, साजन? ना सखि, दर्जी।।
¤
कभी किसी की धाक न माने।
जग की सारी बातें जाने।
उससे हारे सारे ट्यूटर।
क्या सखि, साजन? ना, कंप्यूटर।।
¤
यूँ तो हर दिन साथ निभाये।
जाड़े में कुछ ज्यादा भाये।
कभी कभी बन जाता चीटर।
क्या सखि, साजन? ना सखि, हीटर।।
|
अन्य पुस्तकें
लोगों की राय
No reviews for this book